Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02 Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain Publisher: Jain Vidya SamsthanPage 69
________________ प्रतिक्रमण व्यवहार दृष्टिकोण से कहा गया है। कुन्दकुन्द पारमार्थिक दृष्टिकोण को अपनाने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं- उच्चतम ध्यान के द्वारा सभी दोषों को त्याग देना प्रतिक्रमण है।128 जो मुनि आत्मा का ध्यान करता है सभी विचारों, दोषों, आर्त और रौद्रध्यान, मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र को छोड़ता है वह वास्तविक प्रतिक्रमण करनेवाला कहा जाता है।129 जब तक यह संभव न हो तब तक व्यवहार प्रतिक्रमण जो निश्चय प्रतिक्रमण का सहायक कारण है (उसको) किया जाना चाहिए। (v) प्रत्याख्यान प्रत्याख्यान का अर्थ है- मुनि के पवित्र उद्देश्य से जो कुछ भी असंगत है उसको त्यागना। 30 प्रतिक्रमण पश्चदृष्टि है जबकि प्रत्याख्यान अग्रदृष्टि है। प्रत्याख्यान उसके द्वारा किया जाता है जो मंदकषायी है, आत्मसंयमी है, साहसी है, आवागमन से भयभीत है और जो आत्मा और अनात्मा में भेद करने का अभ्यस्त है। 31 निश्चय दृष्टि से कहा जा सकता है कि जो मुनि शुभ-अशुभ भावों से परे रहता हुआ अपनी आत्मा का ध्यान करता है उसने प्रत्याख्यान का पालन किया है।132 (vi) कायोत्सर्ग कायोत्सर्ग का अभिप्राय हैह्र निर्धारित समय के लिए शरीर के 128. नियमसार, 93 129. नियमसार, 83-86, 89-92 130. मूलाचार, 27 आचारसार, 1/40 131. नियमसार, 105, 106 132. नियमसार, 95 (34) Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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