Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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पूर्व अध्याय का संक्षिप्त विवरण
पूर्व अध्याय में मुनि के आचार के विभिन्न पक्षों की व्याख्या की गयी है। यह कहना न्यायसंगत है कि मुनि का आचार हिंसा को पूर्णतया नकारने के मापदण्ड के अनुरूप है। प्रथम, हमने यह समझाने का प्रयास किया है कि मुनि का अनुशासनात्मक जीवन उन सभी का उन्मूलन कर देता है जो उसकी आध्यात्मिक ज्योति के विकास में बाधक होते हैं। वह उन सभी हानिकारक तत्त्वों को मिटा देता है जो आत्मा की बहुमूल्य ऊर्जा को नष्ट करते हैं और दिव्य गरिमा और सौन्दर्य के प्रकटीकरण को अवरुद्ध करते हैं । द्वितीय, हमने आध्यात्मिक जीवन प्रेरकों के महत्त्व और उनके स्वरूप की व्याख्या की है। हमने अंतरंग और बाह्य अनुशासन की आवश्यकता पर जोर दिया है और अट्ठाईस मूलगुणों के कठोर पालन के महत्त्व को समझाया है। तृतीय, हमने परीषहों और तपों के स्वभाव का निरूपण किया है और साथ में परीषहजय और तपों के पालन के महत्त्व को समझाया है। अंत में मुनि की सल्लेखना (मृत्यु का आध्यात्मिक स्वागत ) की प्रक्रिया को प्रस्तुत किया है।
छठा अध्याय
जैन आचार का रहस्यात्मक महत्त्व
तत्त्वमीमांसा, आचार और रहस्यवाद
हमने स्पष्ट किया है कि जैनाचार के सिद्धान्त तत्त्वमीमांसा पर आश्रित हैं। अहिंसा की धारणा वस्तुओं के तात्त्विक स्वरूप का तार्किक
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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