Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 136
________________ है।177 पूज्यपाद का कथन है कि ध्यान से रहस्यवादी में हर्षोल्लास उत्पन्न होता है और वह आत्मा में स्थापित हो जाता है और उसने सभी सांसारिक संबंधों से अपने आपको हटा लिया है। इस प्रकार की हर्षोल्लास पूर्वक चेतना कर्मरूपी ईंधन को जलाने के लिए समर्थ है। उपर्युक्त सभी गुणस्थान ज्योतिपूर्ण श्रेणी को दर्शाते हैं। अंतिम गुणस्थान अर्थात् दसवाँ गुणस्थान 'प्रथम रहस्यवादी जीवन' की समाप्ति का द्योतक है। यदि क्षपक श्रेणी से चढ़ा जाता है तो आत्मा दसवें से ग्यारहवें गुणस्थान की बजाय बारहवें गुणस्थान में जो क्षीणकषाय गुणस्थान कहलाता है उसमें चढ़ जाता है। यहाँ चारित्रमोहनीय कर्म का दमन नहीं होता है बल्कि नाश होता है। आत्मा एक अर्तमुहूर्त तक इस गुणस्थान में रहता है और द्वितीय शुक्लध्यान की सहायता से आत्मा शेष घातिया कर्मों को नष्ट करता है और रहस्यवादी लोकातीत जीवन का अनुभव करता है। 180 (5) ज्योतिपूर्ण अवस्था के पश्चात् अंधकार काल रहस्यवादी अंधकार में लौट सकता है। प्रथम रहस्यवादी जीवन' या ज्योतिपूर्ण अवस्था से 'द्वितीय रहस्यवादी जीवन' या लोकातीत जीवन भिन्न होता है। आत्मा उच्च शिखर से नीचे की ओर गिर जाता है। जब उपशम सम्यग्दृष्टि जो ग्यारहवें गुणस्थान में ज्योतिपूर्ण अवस्था प्राप्त करता है वह मिथ्यात्व गुणस्थान में लौट जाता 177. ज्ञानार्णव, 52/20 178. गोम्मटसार जीवकाण्ड, 62 179. ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय 180. लब्धिसार, चन्द्रिका टीका सहित, 600, 609 181. Mysticism, P.381 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (101) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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