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गुणस्थान कहलाता है क्योंकि यहाँ केवलज्ञान के साथ योग (क्रिया) भी रहता है।185 गोम्मटसार का कथन है कि इस गुणस्थान में आत्मा परमात्मा कहलाता है।186
___ अगला गुणस्थान अयोगकेवली गुणस्थान कहलाता है क्योंकि वहाँ आत्मा ने योग (क्रियाओं) को नष्ट कर दिया है किन्तु केवलज्ञान सुरक्षित रहा है। तत्पश्चात् वह विदेहमुक्ति प्राप्त कर लेता है। इसके विपरीत पूर्व दोनों गुणस्थानों में वह सदेहमुक्त कहलाता है। मुक्ति की इन . दोनों अवस्थाओं में आध्यात्मिक अनुभव में कोई भेद नहीं होता। आत्मा सयोगकेवली गुणस्थान में चार घातिया कर्म उदाहरणार्थ - ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय को नष्ट करता है। योग के कारण कर्मों का आगमन आत्मा में होता है किन्तु कषाय के अभाव के कारण उसको विकृत नहीं कर सकता। आत्मा सयोगकेवली और अयोगकेवली गुणस्थान में अरिहंत कहा जाता है। 187
अरिहंतों के प्रकारों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है- (1) तीर्थंकर (2) अतीर्थंकर या सामान्यकेवली। इन दोनों में भेद यह है कि पूर्ववर्ती संसारी आत्माओं को उपदेश देने में समर्थ है
और उनके उपदेश गणधरों द्वारा आगम रूप में गूंथे जाते हैं। जबकि परवर्ती धार्मिक सिद्धान्तों को स्थापित करनेवाले नहीं होते हैं किन्तु रहस्यात्मक अनुभव की उदात्तता को ही जीते हैं। इस तरह अरिहंतों के ये दो रूप हैं- 188(1) क्रियाशील अरिहंत (क्रियाशील रहस्यवादी)
185. षट्खण्डागम, भाग-1/191 186. गोम्मटसार जीवकाण्ड, 63, 64 187. भावनाविवेक, 234 188. Mysticism in Mahārāștra, Preface, P.28
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