Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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को पहचान नहीं लेता है।” कुन्दकुन्द हमको गुरु के माध्यम से आत्मा को जानकर उसका ध्यान करने का उपदेश देते हैं। " नागकुमार मुनि कहते हैं कि गुरु का उपदेश प्राप्त करने के पश्चात् मोक्ष आत्मा पर ध्यान करने से प्राप्त किया जाता है।" यह कहना आत्मविरोधी नहीं है कि
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" परमात्मा को अनुभव करने का रहस्य हम चाहें या न चाहें वह रहस्यवादियों के ही हाथ में होता है”60 "केवल उन गुरुओं के माध्यम से ही हम आध्यात्मिक रूपान्तरण कर सकते हैं।"" पूज्यपाद का कथन है कि आत्मा अकेला अपना गुरु होता है क्योंकि वह स्वयं ही आवागमन और मोक्ष के लिए उत्तरदायी है, 2 ये बात निश्चय दृष्टि से कही गयी है। इस कारण से गुरु का महत्त्व अध्यात्मवादी रूपान्तरण के लिए कम नहीं आँका जाना चाहिये क्योंकि व्यवहारनय ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए महत्त्वपूर्ण है । अब हम जैनदर्शन में सद्गुरु की धारणा के बारे में विचार करेंगे |
सर्वोच्च गुरु के रूप में अरिहंत
जैनदर्शन के अनुसार भक्ति के सर्वोच्च विषय केवल पाँच हैं अर्थात्- अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु । इस बात को यह कहकर भी व्यक्त किया जा सकता है कि देव, शास्त्र और गुरु उच्चतम भक्ति के योग्य हैं। फिर यह भी कहा गया है कि अरिहंत, सिद्ध, साधु और अरिहंतों के द्वारा उपदिष्ट धर्म लोक में सर्वोत्तम है। अभिव्यक्ति
57. ंयोगसार, 41
58. मोक्षपाहुड, 63, 64
59. तत्त्वानुशासन, 196
60. Yoga of the Saints, P.57
61. Yoga of the Saints, P.58
62. समाधिशतक, 75
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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