Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 116
________________ जाये। यह सच है कि आत्म-दृष्टि मिलने पर सत्य का अनुभव हो जाता है और उससे आध्यात्मिक आनन्द का अनुभव होता है। यह आध्यात्मिक रूपान्तरण उपशम सम्यक्त्व के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यह दर्शनमोहनीय कर्म के उपशम से उत्पन्न होता है और शुद्ध जल की तरह शुद्ध होता है। सम्यक्त्व (आध्यात्मिक रूपान्तरण) के प्रकार और निम्न गुणस्थानों में गिरने की संभावना, उदाहरणार्थ (क) सासादन गुणस्थान और (ख) मिश्र गुणस्थान ___ यह उपशम- सम्यक्त्व केवल एक अन्तर्मुहूर्त (अधिकतम 48 मिनिट) के लिए होता है लेकिन उसके पश्चात् दर्शनमोहनीय कर्म तीन विभिन्न खण्डों में बँट जाते हैं- (1) मिथ्यात्व, (2) सम्यक्मिथ्यात्व और (3) सम्यक्-प्रकृति। इस प्रकार चौथे गुणस्थान में चार अनंतानुबंधी कषाय और तीन दर्शनमोहनीय कर्म के खंडों का आत्मा उपशम करता है। एक अन्तर्मुहूर्त के पश्चात् आत्मा या तो निम्न गुणस्थानों में गिर जाता है या चौथे गुणस्थान में ही कुछ विकार लिए हुए ठहर जाता है। (1) जब 'मिथ्यात्व' खंड का उदय होता है तो आत्मा पहले (मिथ्यात्व) गुणस्थान में गिर जाता है जहाँ अंधकार उसको घेर 70. दर्शनमोहनीय कर्म और अनंतानुबंधी कषाय एक-दूसरे से अन्तर्गुम्फित हैं। 71. . गोम्मटसार जीवकाण्ड, 649 72. लब्धिसार, 2 73. भावनाविवेक, 100 74. गोम्मटसार कर्मकाण्ड, 26 75. भावनाविवेक, 93 - लब्धिसार, 102 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (81) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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