Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
View full book text
________________
नैतिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूपान्तरण
हमने यह बताया है कि मिथ्यात्व गुणस्थान में आत्मा की दशा पूर्ण रूप से चन्द्रग्रहण के समान होती है अथवा बादलों से घिरे हुए आकाश की तरह होती है। दूसरे शब्दों में, यह आध्यात्मिक निद्रा की स्थिति है जिसकी विशेषता है कि आत्मा स्वयं ही इस निद्रा से अवगत नहीं है। निःसन्देह यह अंधकार का काल है और आत्मा इस विस्मयकारी अंधकार से अनभिज्ञ रहता है । अंधकारमय आत्मा के व्यापक लक्षण इस प्रकार हैं- ऐन्द्रिक जीवन और अपवित्र वस्तुओं में गहन आसक्ति, आत्मा का शरीर, कषाय और बाह्यता के साथ तादात्म्य, लोकातीत जीवन जो पुण्य-पाप से परे होता है उससे अनभिज्ञता, सात प्रकार के भय और आठ प्रकार के मद से ग्रसित और मन की अशान्ति ।
मिथ्यादृष्टि के द्वारा बौद्धिक और नैतिक योग्यता प्राप्त होने पर भी यह नहीं कहा जा सकता कि उसने आध्यात्मिक अंधकार को हटा दिया है। दूसरे शब्दों में, वह गहन रूप से बौद्धिक और दृढ़ रूप से नैतिक हो सकता है किन्तु उसमें रहस्यवाद की योग्यता का अभाव रहेगा, जिसके परिणामस्वरूप वह एक रहस्यवादी सत्य का खोजी और परमात्मा की ओर गति करनेवाला नहीं कहा जा सकेगा। उपर्युक्त वर्णन आश्चर्यचकित कर सकता है किन्तु जैनाचार्यों के द्वारा द्रव्यलिंगी 2 मुनि और अभव्यों का वर्णन जो बौद्धिक ज्ञान और नैतिक विकास में उन्नत थे, आध्यात्मिक रूपान्तरण-रहित जीवन के उदाहरण हैं । निःसन्देह बौद्धिक ज्ञान और नैतिक रूपान्तरण, आगम का अध्ययन और नैतिक सिद्धान्तों के प्रति दृढ़ लगन से कुछ आत्माओं में रहस्यवादी रूपान्तरण
52. आध्यात्मिक रूपान्तरण के बिना मुनि ।
53. वे आत्माएँ जो मोक्ष प्राप्त करने में असमर्थ हैं।
(74)
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org