Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 77
________________ करना अवमौदर्य तप है। भोजन में बत्तीस ग्रास की मात्रा 158 पुरुष के लिए और अट्ठाईस ग्रास की मात्रा महिला के लिए उल्लिखित है, इसमें एक ग्रास की कमी भी करना इस तप के अन्तर्गत सम्मिलित है। 159 इस तप का पालन इन्द्रिय और नींद के संयम के लिए, षट् आवश्यकों और स्वाध्याय आदि को सफलतापूर्वक करने के लिए किया जाता है । 160 (3) वृत्तिपरिसंख्यान - जब मुनि आहार प्राप्त करने के लिए विचा है, तो घरों में जाने की संख्या के विषय में, भोजन ग्रहण करने की विशिष्ट रीति के बारे में, विशेष प्रकार के भोजन के विषय में, देनेवाले की योग्यता के बारे में मुनि का संकल्प होना वृत्तिपरिसंख्यान कहलाता है । 11 दूसरे शब्दों में, उपर्युक्त विषयों में मुनि पूर्व निर्णय करते हैं; यदि चीजें उनके पूर्व निर्णय के अनुसार घटित होती है तो भोजन ग्रहण कर 158. अनगार धर्मामृत, 7/22 षट्खण्डागम, भाग-13, पृष्ठ 56 159. मूलाचार, 350 भगवती आराधना, 211, 212 अनगार धर्मामृत, 7/22 उत्तराध्ययन, 30 / 15 षट्खण्डागम, भाग-13, पृष्ठ 56 160. मूलाचार, 351 अनगार धर्मामृत, 7/22 161. मूलाचार, 355 कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 443 अनगार धर्मामृत, 7/26 भगवती आराधना, 218, 219, 220 221 षट्खण्डागम, भाग-13, पृष्ठ 57 (42) Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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