Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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इन्द्रधनुष के समान या बादलों में बिजली की चमक की तरह अस्थिर होती हैं। सांसारिक सुखों और वस्तुओं को क्षणभंगुर जानकर साधक को उनका संग छोड़ देना चाहिए और उस ज्ञान का उपयोग आध्यात्मिक उन्नति के लिए करना चाहिए जिससे परम सुख उत्पन्न हो सके। कुन्दकुन्द हमको बताते हैं कि शरीर, धन-सम्पत्ति, सुख और दुःख, मित्र और शत्रु आत्मा के शाश्वत साथी नहीं हैं। चाहे गृहस्थ हो या मुनि जो इससे प्रेरणा प्राप्त करता है वह आत्मा पर ध्यान से मोहरूपी गाँठ को नष्ट कर देता है। क्षणभंगुरता के इस प्रेरक को इस प्रकार उच्च प्राप्ति के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।
(ii) मरण की अनिवार्यता का प्रेरक (अशरण-अनुप्रेक्षा)मरण की अनिवार्यता आध्यात्मिक जीवन के लिए प्रभावशाली प्रेरक के रूप में काम करती है। मरण के आगमन पर व्यक्ति निराश्रितता का अनुभव करता है। मरण पक्षपात-रहित होता है। मरण का व्यवहार युवा
और वृद्ध, अमीर और गरीब, बहादुर और कायर सबके साथ एक-सा होता है। कोई भी सांसारिक वस्तु मरण की चुनौती को रोकने में समर्थ नहीं होती है। न तो सांसारिक शक्तियाँ और न ही दैवी शक्तियाँ हमें मरण के चंगुल से बचा सकती हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ कोई स्थान 10. सर्वार्थसिद्धि, 9/7
भगवती आराधना, 1727
कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 7, 9 11. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 22 12. प्रवचनसार, 2/101, 102 13. ज्ञानार्णव, 2/11 14. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 24 15. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 25, 26
मूलाचार, 697 ज्ञानार्णव, 2/16
(6)
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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