Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02 Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain Publisher: Jain Vidya SamsthanPage 59
________________ 86 88 चल चुका है और जो सूर्य के द्वारा तप्त किया जा चुका है।'' (ख) गमन के लिए सूर्य का प्रकाश या दिन का समय आवश्यक है । " चन्द्रमा, तारे और कृत्रिम प्रकाश सूर्य के प्रकाश के स्थान पर काम में नहीं लिये जा सकते। 7 ( ग ) मुनि को जमीन पर चलने में एकाग्रता रखनी चाहिए तथा चलते समय उसको स्वाध्याय और पाँच इन्द्रियों के विषयों में लीनता से अलग रहना चाहिए जिससे वहाँ उपस्थित प्राणियों की हिंसा टाली जा सके।" (घ) मुनि को ऐसे उद्देश्य के लिए जो अपने आध्यात्मिक स्तर और प्रतिष्ठा के अनुरूप हों उसकी प्राप्ति हेतु गमन करना चाहिए, उदाहरणार्थ ऐसे उद्देश्य हैं- तीर्थयात्रा, गुरु से मिलना, अन्य प्रतिष्ठित मुनियों से मिलना, धार्मिक विचार-विमर्श की चुनौती का सामना करना और धर्म का उपदेश देना आदि । " (ङ) गमन की प्रक्रिया के रूप में मुनि को धीरे और करुणापूर्वक गमन करना चाहिए, सावधानीपूर्वक चार हाथ जमीन देखकर चलना चाहिए। ̈ दौड़ना, कूदना, पृथ्वी को 90 85. मूलाचार, 304, 305, 306 86. मूलाचार, 11 नियमसार, 61 उत्तराध्ययन, 24/5 87. भगवती आराधना, 1191 विजयोदया और मूलाराधनादर्पण की टीका सहित 88. भगवती आराधना, 1191 विजयोदया और मूलाराधनादर्पण की टीका सहित उत्तराध्ययन, 24/8 89. भगवती आराधना, 1191 विजयोदया और मूलाराधनादर्पण की टीका सहित 90. नियमसार, 61 (24) मूलाचार, 11, 103 आचारांग, पृष्ठ 137 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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