Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02 Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain Publisher: Jain Vidya SamsthanPage 60
________________ खोदना, अन्य दिशाओं की ओर देखकर चलना आदि अनुपयुक्त क्रियाएँ हैं। " (ii) भाषासमिति - वह मुनि भाषासमिति को पालनेवाला होता है जो चुगली खाने में, दूसरों की हँसी उड़ाने में, आत्म-प्रशंसा में और कठोर शब्द बोलने में रुचि नहीं लेता लेकिन जो अपने या दूसरों के लिए लाभदायक है वही बोलता है।" मुनि को निर्दोष और संक्षिप्त वचन का प्रयोग करना चाहिए और क्रोध, अहंकार, छल-कपट, लोभ, हास्य, भय, वाचालता और गपशप को छोड़ देना चाहिए | " मुनि को पापपूर्ण, निन्दनीय, रूक्ष, कठोर भाषा नहीं बोलनी चाहिए। इसके अतिरिक्त उसको मनमुटाव और गुटबन्दी करनेवाली, दुःखी और अपमान करनेवाली तथा प्राणियों का विनाश करनेवाली भाषा नहीं बोलनी चाहिए। 94 (iii) एषणासमिति - जो मुनि एषणासमिति का पालन करनेवाला होता है वह भोजन की स्वीकृति के लिए निर्धारित किए गये नियमों का पालन करता है।” दूसरे शब्दों में, एषणासमिति का पालन करनेवाला 91. भगवती आराधना, 1191 विजयोदया और मूलाराधनादर्पण की टीका सहित लिंगपाहुड, 15, 16 92. नियमसार, 61 मूलाचार, 12 93. उत्तराध्ययन, 24/9, 10 94. आचारांग, पृष्ठ 150, 151 भगवती आराधना, 1192 मूलाचार, 307 95. मूलाचार, 13 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only (25) www.jainelibrary.orgPage Navigation
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