Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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होता है या कवचसहित व्यक्ति युद्ध में होता है। तीन गुप्ति और पाँच समिति प्रवचनमाता कहलाती है क्योंकि वे मुनि के दर्शन, ज्ञान और चारित्र की उसी प्रकार रक्षा करती हैं जैसे माता अपने बच्चे की रक्षा करती है। पाँच समिति (i) ईर्यासमिति- जो मुनि ईर्यासमिति के अनुशासन के अनुरूप गमन करता है उसको ध्यान देना चाहिए- (क) मार्ग की पवित्रता का, (ख) प्रकाश की उपयुक्तता का, (ग) एकाग्रता का, (घ) उद्देश्य का और (ङ) गमन की प्रक्रिया का।83 (क) वह मार्ग उचित होता है जो ऐसे प्राणियों से रहित होता है जो साधारण रूप से गमन करते समय पीड़ित होते हैं जैसे कीड़े-मकोड़े, चींटी आदि, उसी प्रकार बीज, घास, हरी पत्तियाँ, कीचड़ आदि भी। 4 वह मार्ग उपयुक्त है जिस पर बार-बार गाड़ियाँ और दूसरे वाहन चल चुके हैं, गाय, बैल, घोड़े, स्त्री और पुरुष चल चुके हैं, जिस पर हल
81. मूलाचार, 326, 327, 328
भगवती आराधना, 1201, 1202 82. मूलाचार, 336
उत्तराध्ययन, 24/1, 2 83. मूलाचार, 302
भगवती आराधना, 1191 उत्तराध्ययन, 24/4
तत्त्वार्थसार, 6/7 . 84. भगवती आराधना, 1191 विजयोदया और मूलाराधनादर्पण की टीका
सहित
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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