Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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पूर्णतया नियंत्रित करता है अर्थात् चक्षुइन्द्रिय, कर्णेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनाइन्द्रिय और स्पर्शइन्द्रिय को वह वर्ण, ध्वनि, गंध, स्वाद और स्पर्श की आसक्ति से क्रमशः नियन्त्रित करता है। मुनि इन्द्रियविषयों से प्राप्त सुख व दुःख से पथ-भ्रष्ट नहीं होता है। वह इन्द्रियविषयों को तात्त्विक दृष्टिकोण से देखता है और उनको पुद्गल के विभिन्न रूप मानता है, जो आत्मा के स्वभाव से तात्त्विक रूप से पर है। इस प्रकार उसने यह विश्वास प्राप्त कर लिया है कि कोई भी इन्द्रिय-विषय आत्मलाभ के लिए नहीं है।104 इन्द्रियों को नियंत्रित करने के लिए मुनि को उचित अनुशासन का पालन करना चाहिए। चक्षुइन्द्रिय न तो सुन्दरता से आकर्षित होनी चाहिए और न ही वस्तुओं की कुरूपता से विकर्षित होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त श्रवणेन्द्रिय को संगीत के राग से, घाणेन्द्रिय को सुगन्ध से, रसनाइन्द्रिय को विभिन्न प्रकार के रसों से और स्पर्शइन्द्रिय को विभिन्न प्रकार के स्पर्शों से प्रभावित नहीं होना चाहिए।105 केशलोंच
यह स्पष्ट है कि बालों का स्वाभाविक बढ़ना रोका नहीं जा सकता है। यदि उनको बढ़ने दिया जाय तो जूं आदि उत्पन्न हो जायेगी। परिणामस्वरूप हिंसा नहीं टाली जा सकेगी। यदि बाल काटने के उपकरण काम में लिये जाते हैं तो सांसारिक व्यवस्था में लौटना होगा। अत: केशलोंच ही विकल्प है। यह दो, तीन या चार महीने के बाद की
104. समाधिशतक, 55 105. मूलाचार, 17, 18, 19, 20, 21
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