Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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अनुशासन से अधिक मुनि का अनुशासन होता है। मुनि का जीवन शुभ ध्यान, शुभ योग और शुभ लेश्या का उदाहरण है। ये गृहस्थ के जीवन में अशुभ भाव के मिश्रण के बिना नहीं पाये जातें हैं।
पाँच महाव्रत
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(i) अहिंसा महाव्रत - इस महाव्रत में सब जीवों ( त्रस और स्थावर, स्थूल और सूक्ष्म) के प्रति मन-वचन-काय तथा कृतकारित अनुमोदना से अहिंसा का पालन किया जाता है । 4 मुनि अपने भावों को शुद्ध कर सभी प्राणियों के प्रति मैत्रीभाव रखता है और अपनी कषायों को वश में करके अहिंसा महाव्रत का पालन करता है।” इस महाव्रत का उचित प्रकार से पालन करने के लिए मुनि गमन, भाषा, विचार, वस्तुओं को संभालने, भोजन और पान के प्रति सावधान रहता है | 56
55
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(ii) सत्य महाव्रत - इस महाव्रत में मुनि सभी प्रकार के असत्यों को त्याग देता है क्योंकि किसी प्रकार के असत्य का जीवन में
54. ज्ञानार्णव, 8/8
नियमसार, 56
मूलाचार, 5/289
भगवती आराधना, 776
आचारांग, पृष्ठ 202
55. ज्ञानार्णव, 8 / 10, 11
56. मूलाचार, 337
(16)
अनगार धर्मामृत, 6/34 तत्त्वार्थसूत्र, 7/4
भगवती आराधना, 1206
आचारांग, पृष्ठ 203, 204
चारित्रपाहुड, 32
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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