Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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भी आपने जैन आचार को देखा है वह आपकी अपनी सूझ है और वह आप तत्त्वज्ञान के विद्यार्थी होने से अच्छी तरह कर सके हैं- इसमें सन्देह नहीं है।
इस पुस्तक के हिन्दी-अनुवाद की चर्चा काफी समय से चल रही थी। जैनविद्या संस्थान-अपभ्रंश साहित्य अकादमी की कार्यकर्ता श्रीमती शकुन्तला जैन ने इसके हिन्दी-अनुवाद करने की इच्छा प्रकट की। पिछले 19 वर्षों से वे संस्थान-अकादमी में कार्यरत हैं। प्राकृत और अपभ्रंश की उनकी योग्यता सराहनीय है। उनकी उत्कट इच्छा को देखकर मैंने उनको इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद करने की अनुमति प्रदान कर दी और उसका सम्पादन करना मैंने स्वीकार किया।
___ जब इसके तीन अध्यायों का अनुवाद और सम्पादन कार्य समाप्त हुआ तो इसे डॉ. वीरसागर जैन, अध्यक्ष, जैनदर्शन विभाग, श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली को परामर्श हेतु भेज दिया गया। उन्होंने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए। ये सभी सुझाव अनुवादक को बता दिए गए। उन्होंने अनुवाद को सुझावों के अनुसार सुधारा-सँवारा। सम्पादन के पश्चात् संशोधित अनुवाद को पुनः उन्हें भेज दिया गया। वे अत्यधिक हर्षित हुए।
हमारे साग्रह निवेदन पर उन्होंने इसके प्राक्कथन लिखने की स्वीकृति प्रदान करने की कृपा की। इसके लिए हम उनके अत्यन्त आभारी हैं।
इस पुस्तक को तीन खण्डों में प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया। प्रथम चार अध्याय (1) जैन आचार की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (2) जैन आचार का तात्त्विक आधार (3) सम्यग्दर्शन और सात तत्त्व (4) गृहस्थ का आचार - ये एक खण्ड में रखे गये हैं। अन्य दो
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