Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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आप्त, आगम और गुरु की विशेषताएँ
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(1) आप्त की विशेषताएँ - केवलज्ञान सहित होना, वंदनीय होना, मानवीय दुर्बलताओं से अदूषित व अस्पर्शित रहना, वीतरागी होना, पूर्णतया विमल होना, किसी भी प्रकार की इच्छा से रहित होना, आदि, अन्त और मध्य से रहित होना, अद्वितीयरूप से कल्याणकारी होना । 69 इनके अतिरिक्त बिना किसी स्वार्थ के संसारी और दुःखी जीवों के हित के लिए उपदेश देना।7° (2) आगम की विशेषताएँ - वही सत्य आगम है जो आप्त से सहज रूप से प्रवाहित होता है, अखण्डनीय होता है, सभी प्राणियों के लिए हितकर होता है, मिथ्या मार्ग को नष्ट करनेवाला और वस्तुओं के वास्तविक स्वभाव को प्रकट करनेवाला होता है। 72 (3) गुरु की विशेषताएँ - जो इन्द्रिय आसक्ति की पराधीनता से अपने को दूर रखता है, और सांसारिक व्यस्तताओं और परिग्रह को त्यागता है, आध्यात्मिक अनुभव से अत्यधिक रूप से सम्पन्न होता है, तप और ध्यान में संलग्न रहता है वह सद्गुरु कहलाता है। 72
इस प्रकार हमने प्रसिद्ध जैनाचार्यों द्वारा प्रतिपादित सम्यग्दर्शन के स्वरूप का सर्वेक्षण किया है। प्रारंभ में वे विभिन्न प्रतीत होते हैं, किन्तु हम यहाँ यह बताना चाहते हैं कि सम्यग्दर्शन की उपर्युक्त सभी विशेषताएँ व्यवहार दृष्टिकोण से न्यायोचित हैं।
69. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 7
70. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 8
71. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 9 Niyamsāra, 8
72. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 10
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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