Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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सात तत्त्वों की श्रद्धा उपर्युक्त सभी विशेषताओं में मुख्य .
व्यवहार दृष्टिकोण से सम्यग्दर्शन की सभी विशेषताओं की वैधता होते हुए भी इन सबमें प्रमुख विशेषता सात तत्त्वों में श्रद्धा है। इसका कारण यह प्रतीत होता है कि इन सात तत्त्वों में दृढ़ श्रद्धा स्पष्टरूप से मोक्षप्राप्ति की सम्पूर्ण प्रक्रिया को व्यक्त करती है, जो सामान्य बुद्धिवाले के द्वारा भी समझी जा सकती है। जैन आचार्यों का मत है कि आप्त, आगम और गुरु में श्रद्धा वैध है, यदि यह तत्त्वों में श्रद्धा उत्पन्न करती है। इसका अर्थ यह है कि कभी-कभी आप्त आदि में श्रद्धा, तत्त्वों में श्रद्धा उत्पन्न नहीं करती है, अत: अधिक महत्त्व सात तत्त्वों में श्रद्धा को दिया गया है। यहाँ यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि श्रद्धा को मात्र बौद्धिक ज्ञान से नहीं मिलाना चाहिए। यद्यपि बौद्धिक ज्ञान संभवतया, आवश्यकरूप से नहीं, सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति की तरफ ले जा सकता है। यह (सम्यग्दर्शन) एक प्रकार की अंतरंग दृष्टि है, जो आध्यात्मिक सत्य में एक अविचल निष्ठा उत्पन्न करती है। यह मताग्रह नहीं है, किन्तु बौद्धिक निष्ठा है। परम्परावाद अबौद्धिकवाद के अर्थ में निन्दा किया जाना चाहिए, किन्तु बौद्धिक निष्ठा ग्रहण और स्वीकार की जानी चाहिए।
यहाँ यह माना व विचारा जा सकता है कि केवल वे व्यक्ति जो मानसिकरूप से सुसज्जित (Well-equipped) हैं, सम्यग्दर्शन प्राप्त करने के योग्य होते हैं। किन्तु हम यहाँ यह बताना चाहते हैं कि सम्यग्दर्शन की प्राप्ति मानसिक सुसज्जा से संबंध नहीं रखती है और न जैनकुल में जन्म लेने से ही इसका संबंध है। अध्यात्मवाद पर एकाधिपत्य नहीं हो सकता है। जहाँ कहीं भी यह (अध्यात्मवाद) दृष्टिगत होता है, वहाँ निःसन्देह उन तत्त्वों के नामों से परिचित हुए बिना भी सात तत्त्वों की श्रद्धा को
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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