Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 190
________________ और समन्तभद्र ने इसका समर्थन किया है। कार्तिकेय के अनुसार जो इस प्रतिमा पर बढ़ गया है वह स्वयं रात्रि को भोजन नहीं खाता और न ही दूसरों को खिलाता है। (7) सातवीं प्रतिमा ब्रह्मचर्य प्रतिमा कहलाती है जो पूर्ण ब्रह्मचर्य को प्रस्तावित करती है।19 (8) आठवीं220 प्रतिमा आरंभत्याग प्रतिमा कही जाती है जिसमें साधक नौकरी, व्यापार और जीविकोपार्जन के साधनों को छोड़ देता है। इसके अतिरिक्त वह दूसरों को व्यापार आदि का सुझाव नहीं देता है और जो कोई भी व्यापार आदि करते हैं उनकी प्रशंसा नहीं करता।21 (9) नवी प्रतिमा परिग्रहत्याग प्रतिमा कहलाती है जो सब प्रकार के परिग्रह के त्याग को प्रस्तावित करती है सिवाय वस्त्रों के और उन वस्त्रों में भी साधक आसक्त नहीं होता है।22 समन्तभद्र और कार्तिकेय के अनुसार इस प्रतिमा को पालनेवाले को सिवाय वस्त्रों के सभी प्रकार के परिग्रह को त्याग देना चाहिए।23(10) दसवीं प्रतिमा अनुमतित्याग प्रतिमा कहलाती है जिसमें 218. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 142 219. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 384 वसुनन्दी श्रावकाचार, 297 रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 143 सागारधर्मामृत, 7/16 220. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 144 वसुनन्दी श्रावकाचार, 298 221. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 385 222. वसुनन्दी श्रावकाचार, 299 223. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 386 रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 145 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (155) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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