Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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अचौर्याणुव्रत (अस्तेयाणुव्रत)
दूसरों की अनुमति के बिना किसी की वस्तु को न लेना सर्वोत्तम . अनुशासन है, लेकिन यह गृहस्थ की शक्ति के बाहर है, इसलिए वह बिना दिए ऐसी वस्तुओं को स्वतन्त्रतापूर्वक काम में ले सकता है जो सामान्य प्रयोग की होती है जैसे- कूएँ का पानी व मिट्टी आदि। यह अचौर्याणुव्रत है या स्थूल रूप से अचौर्य का व्रत है। समन्तभद्र के अनुसार जो गृहस्थ अचौर्याणुव्रत का पालन करता है वह न तो बिना दी हुई वस्तुओं को, .. रखी हुई वस्तुओं को, पड़ी हुई वस्तुओं को और दूसरों के द्वारा भूली हुई वस्तुओं को न तो स्वयं लेता है और न दूसरों को देता है। कार्तिकेय कीमती वस्तुओं को कम कीमत में खरीदना चोरी में सम्मिलित करते हैं जिसका कारण यह प्रतीत होता है कि कोई भी व्यक्ति गलत तरीके से प्राप्त वस्तु को कम कीमत में बेच सकता है। सोमदेव के अनुसार भूमिगत : सम्पत्ति राजा या राज्य की होती है इसी प्रकार अज्ञात मालिक की सम्पत्ति भी।” अपने किसी सम्बन्धी की मृत्यु के पश्चात् सम्पत्ति को लेना न्यायसंगत है किन्तु जब वह जीवित हो तो उसकी अनुमति आवश्यक है जिससे गृहस्थावस्था में अचौर्य के व्रत का पालन हो सके। जो गृहस्थ इस व्रत को पालते हैं वे मिलावट से, चोरी के लिए उकसाने से, चोरी की
54. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 106 55. योगशास्त्र, 2/66
रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 57 वसुनन्दी श्रावकाचार, 211
अमितगति श्रावकाचार, 6/59 56. कार्तिकेयानुप्रेक्षा,335 57. Yaśastilaka and Indian Culture p.265
सागारधर्मामृत, 4/48 58. Yasastilaka and Indian Culture p.265
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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