Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 174
________________ उत्पन्न करती हैं जैसे- मद्य, अफीम, धतूरे के बीज, गांजा आदि को जीवनपर्यन्त त्याग देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त आभूषण, वाहन आदि का प्रयोग जो आवश्यक नहीं है, 151 ऐसी वस्तुओं का प्रयोग जो कि महापुरुषों के द्वारा अस्वीकृत की गयी हैं वह भी जीवन भर के लिए या सीमित समय के लिए छोड़ देनी चाहिए। 152 सीमित समय के लिए भोजन, वस्त्र, वाहन, पान - पत्ती, आभूषण आदि का त्याग करना चाहिए, क्योंकि गृहस्थ इनको हमेशा के लिए नहीं छोड़ सकता है। 153 ऐसा अनुशासन पालन करने से अहिंसा का पालन किया जाता है क्योंकि भोग और उपभोग की वस्तुएँ छोड़ने से इन संबंधी हिंसा छूट जाती है। 154 भोगोपभोगपरिमाणव्रत गुणव्रत और शिक्षाव्रत के रूप में वसुनन्दी और तत्त्वार्थसूत्र के टीकाकार पूज्यपाद इसको शिक्षाव्रत में गिनते हैं जबकि समन्तभद्र और कार्तिकेय इसको गुणव्रत मानते हैं। यह अन्तर व्रत के द्वयात्मक स्वरूप के कारण है। इसमें यम जो लक्षण है और नियम जो शिक्षाव्रत का लक्षण है- ये दोनों सम्मिलित हैं। दिव्रत, अनर्थदण्डव्रत, देशव्रत और भोगोपभोगपरिमाणव्रत के स्वरूप का वर्णन करने के पश्चात् हम शेष तीन व्रतों सामायिक, प्रोषधोपवास और अतिथिसंविभाग का जो एकमत से शिक्षाव्रत के रूप में सुनिश्चित हैं, वर्णन करेंगे। 151. सर्वार्थसिद्धि, 7/21 152. राजवार्तिक, 2/7/21, 27 चारित्रसार, पृष्ठ 25 153. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 88, 89 154. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 166 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (139) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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