Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 158
________________ चाहिए। इस प्रकार मूलगुण बदल सकते हैं किन्तु अहिंसा का मापदण्ड नहीं बदल सकता। सोमदेव ने पाँच अणुव्रतों के स्थान पर पाँच उदम्बर फल बताये और तीन- मद्य, मांस और मधु का त्याग उसी प्रकार रखा। अमितगति ने रात्रिभोजन के त्याग को मूलगुणों में जोड़ दिया और बाकी तीन - मद्य, मांस और मधु तथा पंच उदम्बर फलों के त्याग को उसी प्रकार रखा।” अमृतचन्द्र के अनुसार आठ प्रकार की वस्तुओं का त्याग अर्थात् मद्य, मांस और मधु तथा पंच उदम्बर फलों का त्याग- ये आठ मूलगुण कहे जा सकते हैं। आशाधर ने मद्य, मांस और मधु का त्याग, पंच उदम्बर फल का त्याग, रात्रिभोजन का त्याग, पंच परमेष्ठी (अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु) की भक्ति, पानी छानकर पीना और प्राणियों के प्रति करुणा का भाव रखना ये मूलगुण बताये। रात्रिभोजन की समस्या सभी आचार्य इस बात से एकमत हैं कि किसी प्रकार का भोजन रात्रि में करना सूर्य के प्रकाश में किये गये भोजन की अपेक्षा अधिक हिंसा पैदा करता है। विवाद इस बात का है कि गृहस्थ को किस स्तर पर रात्रिभोजन का त्याग करना चाहिए। कुन्दकुन्द,80 कार्तिकेय और समन्तभद्र का मत है कि ग्यारह प्रतिमाओं में से छठी प्रतिमा में रात्रिभोजन 76. Yasastilaka and Indian Culture p.262 77: अमितगति श्रावकाचार, 5/1 78. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 74 79. सागारधर्मामृत, 2/18 80. चारित्रपाहुड, 22 81. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 382 82. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 142 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (123) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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