Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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का त्याग होना चाहिए। सोमदेव और आशाधर 4 इसे अहिंसाणुव्रत में सम्मिलित करते हैं और आशाधर पाक्षिक स्तर पर इसका आंशिक त्याग बताते हैं। अमितगति इसको मूलगुणों में सम्मिलित करते हैं। वसुनन्दी प्रथम प्रतिमा के पूर्व ही इसका पूर्ण त्याग बताते हैं। हेमचन्द्र इसका त्याग भोगोपभोगपरिमाणव्रत में बताते हैं।
तत्त्वार्थसूत्र के टीकाकार पूज्यपाद ने सर्वार्थसिद्धि में रात्रिभोजन त्याग को छठा अणुव्रत माना है। अमृतचन्द्र ने पाँच अणुव्रतों के पश्चात् इसका वर्णन किया है। ऐसा लगता है कि वे भी इसको छठा अणुव्रत मानने के पक्ष में थे। गुणव्रत और शिक्षाव्रत की विभिन्न धारणाएँ ____ पाँच पापों, पाँच अणुव्रतों, मूलगुणों की विभिन्न धारणाओं और रात्रिभोजन त्याग का वर्णन करने के पश्चात् हम गुणव्रतों और शिक्षाव्रतों के स्वरूप पर विचार करेंगे जो कि सात शीलव्रत के रूप में जाने जाते हैं। ये शीलव्रत अणुव्रतों की रक्षा का काम करते हैं और अधिक स्पष्ट 83. Yasastilaka and Indian Culture p.264 84. सागारधर्मामृत, 4/24 85. सागारधर्मामृत, 2/76 86. अमितगति श्रावकाचार, 5/1 87. वसुनन्दी श्रावकाचार, 314 88. योगशास्त्र, 3/48 89. सर्वार्थसिद्धि, 7/1 90. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 129 91. धर्मबिन्दु, 155
पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, 136
चारित्रसार, पृष्ठ 13 92. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 136
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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