Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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श्रद्धा सम्यग्दर्शन है। कुछ महान आचार्य जैसे-उमास्वामी,64 अमृतचन्द्र
और 'द्रव्यसंग्रह' के रचनाकार सर्वसम्मति से सम्यग्दर्शन को सात तत्त्वों की श्रद्धा के रूप में चित्रित करते हैं। स्वामीकार्तिकेय के अनुसारजो सम्यग्दर्शन धारण करना चाहता है वह नौ पदार्थों में श्रद्धा रखे तथा उसको अनेकान्तवाद और स्याद्वाद में भी श्रद्धा रखनी चाहिए। आचार्य समन्तभद्र के शब्दों में जो व्यक्ति आप्त, आगम और गुरु में तीन प्रकार की मूढ़ताओं को छोड़कर, आठ प्रकार के मद से रहित होकर और सम्यग्दर्शन के आठ अंगों को ग्रहण करके श्रद्धा रखता है, वह सम्यग्दर्शन का धारक है। हम पहले ही छह द्रव्यों, पाँच अस्तिकायों, सात तत्त्वों, नौ पदार्थों, अनेकान्तवाद और स्याद्वाद को समझा चुके हैं जो सम्यग्दर्शन के विभिन्न दृष्टिकोणों में उल्लिखित हैं। हम सम्यग्दर्शन के आठ अंगों को यहाँ समझायेंगे। प्रथम, हम आप्त, आगम और गुरु की विशेषताओं पर विचार
करेंगे।
63. वसुनन्दि श्रावकाचार, 6 64. तत्त्वार्थसूत्र, 1/2 65. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 22 66. Dravya-Samgraha, 41 67. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 311, 312 68. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 4
*तीन मूढ़ताएँ- (1) देव मूढ़ता, (2) गुरु मूढ़ता और (3) आगम मूढ़ता।
आठ मद- (1) ज्ञान, (2) प्रतिष्ठा, (3) कुल, (4) जाति, (5) बल, (6) ऋद्धि या विद्या, (7) तप और (8) शरीर।
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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