Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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अहिंसाणुव्रत का पालन करने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए। प्रथम, देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त करने की धारणा से प्रभावित होकर किसी भी व्यक्ति को पशुओं की बलि नहीं देनी चाहिए।३० द्वितीय, मेहमानों के स्वागत के लिए पशुओं को मारना आवश्यक नहीं होना चाहिए।" तृतीय, मन में यह धारणा रखना कि एक जीव को मारने की तुलना में शाकाहारी भोजन असंख्य जीवों के मारने की अपेक्षा रखता है प्रारंभ में चित्ताकर्षक लग सकता है, किन्तु यह इस दृष्टि से मूढ़तापूर्ण है कि एक पशु के शरीर में असंख्य सूक्ष्म जीव होते हैं जो अनिवार्य रूप से मारे जाएंगे और साथ ही पंचेन्द्रिय जीव के घात से अधिक अशुभ आस्रव उत्पन्न होगा अर्थात् वनस्पति-जगत के एकेन्द्रिय जीवों के प्राणों की अपेक्षा पंचेन्द्रिय जीव के द्रव्य और भाव प्राणों के अधिक घात के कारण पाप अधिक होगा। चतुर्थ, साँप, बिच्छु, शेर आदि को इस आधार पर नहीं मारना चाहिए कि ऐसा करने से बड़ी संख्या में अन्य जीव बच जायेंगे और वे (साँप, बिच्छु आदि) भी अनवरत हिंसा के पाप से बच जाएंगे। पंचम, ऐसी गलत धारणा के प्रभाव से कि वे लोग जो दुःखी और विपत्तिग्रस्त हैं मार दिये जाने पर शांति प्राप्त कर लेंगे, जीवित प्राणी नहीं मारे जाने चाहिए। अंतिम, दूसरे प्राणियों की भूख से प्रभावित होकर किसी भी व्यक्ति को उसकी भूख शांत करने के लिए अपने शरीर का मांस नहीं देना चाहिए।
30. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 79, 80 31. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 81 32. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 82, 83 33. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 84 34. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 85 35. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 89
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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