Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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यदि बाह्य वस्तुओं का त्याग अंतरंग तीव्र कषाय के नाश में और भक्ति, स्वाध्याय और ध्यान के विकास में फलित नहीं होता है तो ऐसा अनुशासन पूर्णतया व्यर्थ होगा। अतः तीव्र कषाय को छोड़ना बड़ा महत्त्वपूर्ण है यद्यपि बोलचाल में वैराग्य का मतलब होता है बाह्य संबंधों और वस्तुओं के जगत से अपने आपको दूर हटाना, फिर भी जो अंतरंग अर्थ है वह तो तीव्र कषायरूपी मैल को दूर हटाना है जो अवश्य ही आत्मा को संबंधों और वस्तुओं से दूर ले जायेगा।
तीव्र कषायें हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्मचर्य और परिग्रह पाप रूप में चित्रित की गयी हैं। इन पापों (अवगुणों) के निष्कासन के लिए सद्गुण अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह आवश्यक हैं। इनमें से अहिंसा आधारभूत सद्गुण है । अहिंसा को उचित प्रकार से संपोषित करने के लिए शेष सभी सद्गुण साधन के रूप में माने गए हैं, जिस प्रकार अनाज के खेत की रक्षा के लिए पर्याप्त घेराबन्दी आवश्यक होती है।' गृहस्थ आंशिक रूप से इन सद्गुणों का पालन करते हैं, जो अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत और परिग्रहपरिमाणाणुव्रत कहलाते हैं। अब हम एक-एक करके पापों का वर्णन करेंगे और उनसे गृहस्थ के आंशिक व्रतों के विषय क्षेत्र को जानने का प्रयास करेंगे।
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हिंसा का व्यापक अर्थ
· लोकातीत (निश्चय) दृष्टिकोण से हम यह कह सकते हैं कि पूर्ण आत्मानुभव से थोड़ा-सा भी पतन हिंसा समझी जानी चाहिए। दूसरे शब्दों में, आत्मा में मन्द कषाय या तीव्र कषाय की उत्पत्ति से हिंसा प्रारंभ
5. सर्वार्थसिद्धि, 7/1
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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