Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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संघ से संबंधित थे। नाथूराम प्रेमी का कथन है कि- दर्शनसार के लेखक देवसेन ने, अनावश्यकरूप से और बिना किसी यथेष्ट कारण के इन संघों को नकली जैन कहा। (4) हमें एक अन्य संघ का नाम मिलता है जो यापनीयसंघ के नाम से जाना जाता है; जो विक्रम संवत् के 205 वर्ष बाद (148 ई.) श्री कलश द्वारा कल्याण में आरंभ किया गया था। यापनीय संघ के मुनियों ने दिगम्बरों की तरह नग्नता
का आचरण किया, श्वेताम्बरों के अनुरूप स्त्रियों के मोक्ष में विश्वास किया। इस प्रकार वे दो प्रमुख सम्प्रदायों में सामञ्जस्य स्थापित करानेवाले कहे जा सकते हैं। आजकल इस संघ के अनुयायी नहीं देखे जाते हैं। डॉ. उपाध्ये के अनुसार या तो उनका उन्मूलन हो गया या उन्होंने अपने आपको दिगम्बर सम्प्रदाय में मिला लिया। (5-6) समय के बीत जाने पर मुनि अनुशासन के प्रस्तावित मार्ग से विचलित हो गये; उन्होंने ऐसे आचरण प्रारम्भ कर दिये जिनका कोई शास्त्रीय आधार नहीं था। ऐसे मुनियों को भट्टारक कहा जाने लगा। ये भट्टारक इस हद तक पथभ्रष्ट हुए कि दिगम्बर परम्परा के द्वारा प्रस्तावित अनुशासन की पवित्रता संकट में पड़ गई। इसके परिणामस्वरूप सत्रहवीं शताब्दी में आगरा के पंडित बनारसीदास भट्टारकों की विकृत प्रवृत्तियों के विरोध में खड़े हुए और उन्होंने एक पंथ को प्रवर्तित किया जो तेरापंथ कहलाया। जो भट्टारकों के अनुयायी बने रहे वे बीसपंथी कहलाये।1 तेरापंथ और बीसपंथ नाम किस प्रकार प्रचलन में आये- यह एक उलझन भरा प्रश्न है। तेरापंथी भट्टारकों को अपना
38. दर्शनसार, पृष्ठ 45 39. दर्शनसार, पृष्ठ 38-39 40. जैन साहित्य और इतिहास, पृष्ठ 493 41. जैन साहित्य और इतिहास, पृष्ठ 493
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