Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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कर्म के आस्रव के कारण हैं- दानशीलता, विश्वजनीन अनुकम्पा, जो व्रतों का पालन करते हैं उनका विशेष ख्याल रखना, राग के साथ आत्मसंयम, मन, वचन और काय की शुभ कार्यों में एकाग्रता और क्रोध तथा लोभ का निष्कासन।” दर्शनमोहनीय कर्म के आस्रव के कारण हैं- केवलियों, आगमों और साधुओं पर मिथ्यादोषारोपण करना। चारित्रमोहनीय कर्म के आस्रव का कारण हैं- तीव्र मानसिक मनोभाव जो कषायों और ईषत् कषायों के उत्पन्न होने के कारण होता है। नरकायु के आस्रव के कारण हैं- हिंसा के कार्यों में सतत झुकाव, दूसरे मनुष्यों के धन की चोरी, स्वयं के परिग्रह पर अतिराग, इन्द्रिय विषयों में आसक्ति, मरण के समय कृष्ण लेश्या व रौद्रध्यान का प्रकट होना।40 तिर्यंचायु के आस्रव के कारण हैं- मन, वाणी और शरीर में असंगति, मिथ्या सिद्धान्तों का उपदेश, असंयमित जीवन, नील तथा कापोत लेश्या का प्रकट होना और शरीर से आत्मा के प्रयाण के समय आर्तध्यान। मनुष्यायु के आस्रव के कारण हैं- विनम्रता की प्रवृत्ति, सरल स्वभाव और सरल व्यवहार, मन्द कषाय और मरण के समय मन में अशान्ति न होना।42 देवायु के आस्रव के कारण हैं- अणुव्रत व सरागसंयम का पालन, विवशता में शांतिपूर्वक भूख और प्यास को सहना और बिना आध्यात्मिक प्रभाव के तप करना। अशुभनामकर्म
37. सर्वार्थसिद्धि, 6/12 38. सर्वार्थसिद्धि, 6/13 39. सर्वार्थसिद्धि, 6/14 40. तत्त्वार्थसूत्र, 6/15 __सर्वार्थसिद्धि, 6/15 41. तत्त्वार्थसूत्र, 6/16
42. तत्त्वार्थसूत्र, 6/17, 18 - 43. तत्त्वार्थसूत्र, 6/20
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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