Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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पाहा
और तात्विक महत्त्व से हमको दूर ले जाती है। अत: इससे साम्परायिक आस्रव उत्पन्न होता है जो हमारी आत्मा के अंतरंग जीवन को मदोन्मत्त (बेहोश) कर देता है, जिससे जीवन और मृत्यु का सतत चक्र उत्पन्न होता है। संसारी आत्मा जो अनात्मा के दलदल में फँसी हुई है, इस प्रकार की क्रिया का उदाहरण है।
निम्न पृष्ठों में, प्रथम, हम कषायों की विभिन्न प्रकार की क्रियाओं पर विचार करेंगे और द्वितीय, हम साम्परायिक आस्रव पर विचार करेंगे जो कषायसहित योग से उत्पन्न होता है। दो प्रकार के साम्परायिक योग जो शुभ और अशुभ मनोभावों से उत्पन्न होते हैं उनसे शुभ और अशुभ आस्रव घटित होते हैं। यहाँ सरसरी तौर पर उल्लेख किया जा सकता है कि यह शुभ और अशुभ मनोभाव अपना नाम कषायों के मापक्रम (Scale) के अनुसार प्राप्त कर लेते हैं। कषायों के मापक्रम के अनुसार मापक्रम के एक छोर से मध्य तक हम शुभ मनोभावों को रख सकते हैं और दूसरे छोर से मापक्रम के मध्य तक अशुभ मनोभावों को रख सकते हैं। इनमें प्रकार का भेद है स्वभाव का भेद नहीं है। अत: आध्यात्मिक अनुभव की ऊँचाई पर पहुँचने के लिए इन दोनों को हटाये जाने की आवश्यकता है।
कषाय की विविध अभिव्यक्तियाँ . (क) कषायें मिथ्यात्वसहित शुभ और अशुभ मनोभावों को समाविष्ट
करनेवाली मानी जाती हैं- 'कषाय' शब्द आत्मा की पूर्ण विकृति को समझने के लिए अतिसंक्षिप्त और अतिसरल अभिव्यक्ति है। कषायें आत्मा को मोहित करने और पथभ्रष्ट करने में बहुत व्यापक और गहरी होती हैं। ये इतनी सशक्त होती हैं कि ये हमारे हृदय को संसार के असारभूत सुखों में लगा देती हैं, ये पूर्णरूप से हमारी ऊर्जाओं (शक्तियों) को इस तरह 16. सर्वार्थसिद्धि, 6/3
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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