Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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विद्यमान हैं। यहाँ यह कहा जा सकता है कि तात्त्विक, आचारशास्त्रीय
और धार्मिक सिद्धान्त जो दिगम्बर और श्वेताम्बर ग्रंथों में वर्णित हैं, कोई विशिष्ट भेद नहीं दर्शाते हैं। दिगम्बरों के पंथ
समय बीतने के साथ ही दिगम्बरों और श्वेताम्बरों में नये सम्प्रदायों (पंथों) का उदय हो गया। पहले हम दिगम्बर सम्प्रदायों (पंथों) की ओर संकेत करेंगे तत्पश्चात् श्वेताम्बर सम्प्रदायों (पंथों) की ओर चलेंगे। दिगम्बरों के विभिन्न पंथ ये हैं- (1) द्रविडसंघ (2) काष्ठासंघ (3) माथुरसंघ (4) यापनीयसंघ (5) तेरापंथ (6) बीसपंथ (7) समइयापंथ और (8) गुमानपंथ।
. (1) द्रविडसंघ- दर्शनसार के अनुसार विक्रम संवत् 526 (469 ई.) में द्रविड देश मद्रास के पास प्रकट हुआ और वज्रनन्दि के द्वारा जो पूज्यपाद के शिष्य थे; आरंभ किया गया। बहुत से महान आचार्य जैसे- जिनसेन (हरिवंशपुराण के रचयिता), वादिराज आदि ने संघ को संरक्षण दिया लेकिन इस संघ में मुनियों के अनुशासन के प्रचलित नियमों के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है। (2) विक्रम संवत् 753 (696 ई.) में कुमारसेन मुनि द्वारा काष्ठासंघ स्थापित किया गया; उनके शिष्य गायों के बालों से बनी हुई पीछी रखते थे। (3) काष्ठासंघ की उत्पत्ति के 200 वर्ष बाद विक्रम संवत् 953 (896 ई.) में रामसेन द्वारा माथुरसंघ” दक्षिण भारत में मदुरा में आरंभ किया गया; इस संघ के मुनि पीछी नहीं रखते थे। आचार्य अमितगति इस
35. दर्शनसार, पृष्ठ 38, 41 36. दर्शनसार, पृष्ठ 39, 41 37. दर्शनसार, पृष्ठ 39, 41
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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