Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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शुद्धात्मा के अनुभव में बाधा डालते हैं। तृतीय सोपान- द्वितीय सोपान का तार्किक परिणाम तृतीय सोपान है अर्थात् उसमें शुद्धात्मा का अनुभव किया जाता है, केवल अनात्मा से भेद ही नहीं किया जाता है। इस प्रकार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की प्राप्ति आत्मा की अनुभूति के समान है जिसको संक्षेप में नैतिक उच्चतम आदर्श कहा जाता है। अगले अध्याय में हम प्रथम सोपान की व्याख्या करेंगे और शेष सोपानों का क्रमश: चौथे, पाँचवें और छठे अध्याय में विवेचन किया जायेगा।
149. द्रव्यसंग्रह, 40
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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