Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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पुद्गल के प्रकार
पुद्गल दो प्रकार के हैं- अणु (परमाणु) और स्कन्धा' परमाणुओं के दो से लेकर अनन्त तक का संचय स्कन्ध में सम्मिलित हैं। अणु केवल एक प्रदेशी होता है; यह पुद्गल के विभाजन का अंत है; यह अपने आप में आदि, मध्य और अंत से रहित होता है; यह ध्वनिरहित होता है और रस, स्पर्श, गंध और वर्ण के गुणों से जुड़ा हुआ होता है।" इसके अतिरिक्त, यह अविनाशी और शाश्वत है। यह उनका (स्कन्धों का) आधारभूत कारण भी होता है और यह समय का माप भी है। फिर, यह ध्वनिरहित होता है, किन्तु ध्वनि का कारण होता है जब परमाणुओं का जोड़ दूसरे जोड़ों के साथ टकराता है तो ध्वनि पैदा होती है। कोई एक वर्ण, कोई एक रस, कोई एक गंध, किन्तु स्पर्श का जोड़ा, जो आपस में विरोधी नहीं है अर्थात् शीत और स्निग्ध या शीत
और रूक्ष या उष्ण और स्निग्ध या उष्ण और रूक्ष का जोड़ा। 2 शेष स्पर्श अर्थात् कोमल और कठोर, हल्का और भारी केवल स्कन्ध अवस्था में ही प्रकट होते हैं और इस प्रकार वे परमाणु अवस्था में उपस्थित नहीं होते हैं। स्निग्धता और रूक्षता के गुण प्रगाढ़ता की मात्रा में न्यूनाधिक होते हैं। इस प्रकार वे गुण निम्नतम सीमा से उच्चतम सीमा
57. तत्त्वार्थसूत्र, 5/25
Niyamasāra, 20 58. सर्वार्थसिद्धि, 5/26 59. पञ्चास्तिकाय,77 60. पञ्चास्तिकाय, 80 61. पञ्चास्तिकाय, 78, 79, 81 62. Niyamasāra, 27
पञ्चास्तिकाय, अमृतचन्द्र की टीका, 81
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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