Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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संसारी जीव (आत्मा) के भेद-एकेन्द्रिय संसारी जीव .
संसारी जीव की पहिचान उसके प्राणों द्वारा होती है। संसारी जीव के कम से कम चार प्राण होते हैं- एक इन्द्रिय, एक बल, आयु और श्वासोच्छ्वास और अधिकतम दस प्राण होते हैं:-पाँच इन्द्रियाँ, तीन बल, आयु और श्वासोच्छ्वास।106 कर्म पुद्गलों से एक आत्मा कितनी ही भार ग्रस्त हो सकती है, फिर भी यह पूर्णतया चेतना की अभिव्यक्ति को नहीं रोक सकती, जैसे- अत्यधिक घने बादल भी सूर्य के प्रकाश को . पूर्णतया नहीं रोक सकते। अस्तित्व की श्रेणी में एकेन्द्रिय जीव निम्नतम हैं। उनके चार प्राण होते हैं। इसको स्पष्ट करने के लिए यह कहा जा सकता है कि पाँच इन्द्रियों- स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण में से एकेन्द्रिय जीव के केवल स्पर्शन इन्द्रिय होती है और तीन बल- मन, वचन और काय में से उनके केवल कायबल होता है और इसके अतिरिक्त आयु और श्वासोच्छ्वास होता है। ये एकेन्द्रिय जीव पाँच प्रकार के होते हैं107पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीव। एकेन्द्रिय जीव की पहिचान बड़ी कठिनाई से होती है, क्योंकि चार प्राण स्पष्टतया प्रकट नहीं होते हैं, जैसे- एक आदमी के प्राण सुन्न अवस्था में या पक्षी के अंडे में जीव के प्राण या भ्रूण अवस्था में प्राण उनके स्पष्टतया प्रकट होने के अभाव में नहीं पहचाने जा सकते हैं।108
106. पञ्चास्तिकाय, 30
प्रवचनसार, अमृतचन्द्र की टीका, 2/54, 55 107. पञ्चास्तिकाय, 110
सर्वार्थसिद्धि, 2/13 108. पञ्चास्तिकाय, 113
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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