Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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तक और एक बिन्दु से अनन्त तक विस्तार को प्राप्त होते हैं। स्निग्धता के दृष्टिकोण से बकरी, गाय, भैंस और ऊँटनी के दूध में प्रगाढ़ता की मात्रा का परिवर्तन साधारणतया देखा जा सकता है और रूक्षता के दृष्टिकोण से धूलि (पांसु), धूल का जर्रा (कणिका), रेत (शर्करा) में भी प्रगाढ़ता की मात्रा का परिवर्तन देखा जा सकता है। अत: परमाणुओं के इन दो गुणों में अनन्त परिवर्तनशीलता के साथ उनका अस्तित्व हो सकता है। परमाणुओं को आपस में जोड़ने के लिए ये उत्तरदायी हैं।65 यद्यपि जैनदर्शन के अनुसार परमाणु सक्रिय है, किन्तु सक्रियता संयोग का कारण नहीं है।
वे परमाणु जो स्निग्धता और रूक्षता की निम्नतम श्रेणी में हैं, (वे) एक दूसरे के साथ या दूसरी प्रगाढ़ताओं के साथ संयोजित नहीं होते हैं। इसके अतिरिक्त, जो परमाणु स्निग्धता और रूक्षता में तुल्य मात्रावाले होते हैं वे भी एक दूसरे के साथ संयोग को प्राप्त नहीं होते हैं। किन्तु वे परमाणु जो स्निग्धता और रूक्षता की मात्रा में दो अंश ज्यादा होते हैं, वे
आपस में जुड़ जाते हैं अर्थात् परमाणु जो स्निग्धता और रूक्षता की दो मात्रावाले हैं उनका संबंध चारमात्रा वाले परमाणुओं से हो जायेगा। इसी प्रकार दूसरे संयोगों के लिए भी ये नियम लागू होगा। इसके अतिरिक्त परमाणु जिनमें स्निग्धता और रूक्षता की चार मात्रा होती है वे दो मात्रावाले स्निग्धता और रूक्षता के परमाणुओं को अपने प्रकृति में रूपान्तरित 63. सर्वार्थसिद्धि, 5/33 64. सर्वार्थसिद्धि, 5/33 65. गोम्मटसार जीवकाण्ड, 608 66. पञ्चास्तिकाय, अमृतचन्द्र की टीका, 98 67. सर्वार्थसिद्धि, 5/34 68. सर्वार्थसिद्धि, 5/35 - 69. सर्वार्थसिद्धि,5/36 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त ... (31)
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