Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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कराये गये हैं; उनमें से एक केशी और गोयम के बीच का वार्तालाप है जो उत्तराध्ययन में उल्लिखित है। इसके बारे में याकोबी का कथन है, “पार्श्व का अनुयायी विशेषरूप से केशी महावीर के समय में उनके अनुयायियों का अग्रणी था। यह बात बहुधा जैनसूत्रों में ऐसे तथ्यात्मक तरीके से बताई गई है कि उस लेख की प्रामाणिकता में संदेह करने के लिए कोई कारण नहीं है।"10 तृतीय, पार्श्व के पाँच सौ अनुयायियों द्वारा महावीर के पाँच प्रकार के धर्म की तुंगिया पर . स्वीकृति महावीर के पूर्व जैनधर्म के अस्तित्व का समर्थन करती है।'' पार्श्व का जीवन और प्रभाव
पार्श्व की ऐतिहासिकता होते हुए भी उनके बारे में बहुत कम तथ्य मालूम हैं। उनके पिता वाराणसी के राजा विश्वसेन थे, और उनकी माता वामा थी। उन्होंने अपना जीवन तीस वर्ष तक गृहस्थ अवस्था में बिताया और इसके बाद साधु जीवन व्यतीत किया।.83 दिन तक कठोर तपस्वी जीवन का अनुसरण करने के पश्चात् उन्होंने केवलज्ञान (पूर्णज्ञान) प्राप्त किया, और अपने जीवन के 100 वर्ष पूर्ण होने के पश्चात् सम्मेद पर्वत के शिखर पर महावीर के निर्वाण प्राप्त करने के 250 वर्ष पूर्व मुक्ति प्राप्त की। “मुख्य शहरों में से जिनमें उन्होंने भ्रमण किया था वे हैं- अहिछत्ता, आमलकप्पा, हत्थिनापुर, कंपिल्लपुर, कोसम्बी, रायगिह, सागेय और सावत्थी। इससे यह मालूम होता है कि उन्होंने बिहार और उत्तरप्रदेश के आधुनिक प्रदेशों में भ्रमण किया।''12 9. Uttarādhyayana, XXIII 10. Sacred Books of the East Series, Vol. XLV. p. XXI 11. Bhagavaī, pp. 136 ff. vide History of Jaina Monachism,
pp. 63-64. 12. History of Jaina Monachism, pp. 60-61
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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