Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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व्यवहार नय और निश्चय नय
निश्चय नय जीव का यथार्थ स्वरूप बताता है। इसके विपर्यास में, व्यवहार नय वर्तमान उपाधियों के आधार पर जीव स्वरूप को बताता है । निरुपाधिक वर्णन न करने से वह अथार्थ है । तथापि, व्यवहार नय की गणना मिथ्याज्ञान में नहीं है, यह सम्यक् ज्ञान का भेद है । इसमें संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय भी नहीं होते। यह सापेक्ष वर्णन है । यह मन्द बुद्धि शिष्य को सामान्य मूर्खता की अपेक्षा 'गधा' कहने के समान है । व्यवहार नय मिथ्याभाषी नहीं है, सम्यग् ज्ञान है और प्रमाण कोटि में आता है ।
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अध्यात्म अमृत कलश, ५७
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