Book Title: Granth Pariksha Part 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 9
________________ भद्रबाहु - संहिता | [ ग्रन्थ- परीक्षा । ] जनसमाजमें, भद्रबाहुस्वामी एक बहुत प्रसिद्ध आचार्य हो गये हैं। आप पाँचवें श्रुतकेवल थे । श्रुतकेवली उन्हें कहते हैं जो संपूर्ण द्वादशांग श्रुतके पारगामी हों उसके अक्षर अक्षरका जिन्हें यथार्थ ज्ञान हो । दूसरे शब्दोंमें यों कहना चाहिए कि तीर्थकर भगवानकी दिव्यध्वनि द्वारा जिस ज्ञान-विज्ञानका उदय होता है उसके अविकल ज्ञाताओंको श्रुतकेवली कहते हैं । आगममें संपूर्ण पदार्थोंके जाननेमें केवली और श्रुतकेवली दोनों समान रूपसे निर्दिष्ट हैं । भेद है सिर्फ प्रत्यक्ष-परोक्षका या साक्षात्असाक्षात्का । केवली अपने केवलज्ञान द्वारा संपूर्ण पदार्थों को प्रत्यक्ष रूपसे जानते हैं और श्रुतकेवली अपने स्याद्वादालंकृत श्रुतज्ञान द्वारा उन्हें परोक्ष रूपसे अनुभव करते हैं। जैसा कि स्वामि समन्तभद्रके इस वाक्यसे प्रगट है: - स्याद्वादकेवलज्ञाने सर्वतत्त्वप्रकाशने । भेदः साक्षादसाक्षाच ह्यवस्त्वन्यतमं भवेत् ॥ १० ॥ –आप्तमीमांसा !

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