Book Title: Granth Pariksha Part 02 Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay View full book textPage 7
________________ सूचना । जनहितेषीमें भद्रबाहुसंहिताक समालोचना प्रकाशित हो चुकनेके बाद मालूम हुआ कि इन्दौरकी हाईकार्टके जज श्रीयुत बाबू जुगमंदरलालजी जैनी एम. ए. ने जैन ला ( Jain Law) नामकी एक पुस्तक अँगरेजीमें लिखी है और उसका 'दारो मदार ' इसी भद्रबाहुसंहिता पर हे जो इस समालोचनाके द्वारा अच्छी तरह जाली सिद्ध कर दी गई है। इसी का ' दाय भाग ' प्रकरण जैर्नाजीने अपनी उक्त पुस्तकमें अँगरेजी अनुवादसहित प्रकाशित किया है और उसे लगभग २३०० वर्षका पुराना समझा है । अवश्य ही पुस्तक लिखते समय जज साहबको इसके जाली होनेका सयाल न होगा, नहीं तो वे इसे कभी प्रमाणभूत नहीं मानते; पर अब आशा है कि वे अपने पूर्व विचारोंको शीघ्र ही बदल देंगें और तदनुसार अपनी पुस्तकको अन्य किसी प्रामाणिक ग्रन्थके आधारसे ठीक कर लेंगे । अन्यान्य भाइयोंको भी चाहिए कि यदि किसी दायभागके झगड़े में यह जाली संहिता पेश की जाय तो वे इसे कभी प्रामाणिक न मानें और इसकी अप्रामाणिकता सिद्ध करनेके लिए इस परीक्षालेखको उपस्थित करनेकी कृपा करें । प्रकाशक ।Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 127