Book Title: Granth Pariksha Part 02 Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay View full book textPage 5
________________ १ उस ر د शुद्धिपत्र । पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध १ १५ ॥१०॥ ॥१०५ ।। खंडको दूसरे खंडको ११६ चाहिए, चाहिए थी, -१२ १६ लिये हुए दिये हुए ॥ १५ ॥ ॥१८॥ ॥१६॥ ॥ १९ ॥ १५ ९-१३ कि “यह...गया है।" कि, यह...गया है। ॥७-१६॥ ॥ ७-१९ ॥ ग्रंथ उस ॥१८॥ आगे आज इस लेख में और उसमें कई और कई सद्यः मित्रं ६७ १९ ॥४-७८२ ॥ ॥४-७८ ॥ १०५ १०८ धर्माणाः धर्माराः प्रबारसम्बंधी अध्यायोंके ग्रहाचारसम्बंधी जो दूसरे पद्य इसअध्यायमें पाय जाते हैं वेसव भी दूसरेखंडके प्रहा चार संबंधी अध्यायोंके देनेसे लोप देनेसे धर्मका लोप ॥१६॥ कर्मप्रवृत्तिका कर्मप्रकृतिका १०९ १३ अनाजके ढेरों या हाथियों- गजशालाओं, के स्तंभों, त्रियोंके निवासस्थानों, ॥२१५ ॥ ॥ २१९ ॥ ११० ५ स्तम्वेराणां च स्तम्वेरमाणां १११ भूद्रापको (?) भूज्ञापको पृष्ठ ७७ के फुटनोटमें ' यथाः-' के बाद “हामाकारौ च..." इत्यादि पयः नं० २१५ और बना लेना चाहिये जो गलतीसे पृष्ठ ७८ पर छपगया है । और: वहाँसे उसे निकाल देना चाहिये। १२ ९४ १०Page Navigation
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