Book Title: Granth Pariksha Part 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 4
________________ ( २ ) भी लेख नहीं निकला; बल्कि बहुतसे विद्वानोंने हमारे तथा लेखक महाशयके समक्ष इस बात को स्पष्ट शब्दोंमें स्वीकार किया कि आपकी समालोचनायें यथार्थ हैं । जैनमित्र के सम्पादक ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीने पहले दो लेखोंको नैनमित्रमें उद्धृत किया और उनके नीचे अपनी अनुमोदनसूचक सम्मतिप्रकट की । इसी प्रकार दक्षिण प्रान्तके प्रसिद्ध विद्वान और धनी सेठ हीरा -. चन्द नेमीचन्दजीने लेखमाला के प्रायः सभी लेखोंको मराठीमें प्रकाशित कराके मानों यह प्रकट कर दिया कि इस प्रकारके लेखोंका प्रचार जितना अधिकहो सके उतना ही अच्छा है । यह सब देखकर अब हम ग्रन्थपरीक्षाके समस्त लेखोंको पृथक् पुस्तकाकार छपानेके लिए तत्पर हुए हैं। यह लेखमाला कई भागों में प्रकाशित होगी, जिनमें से पहले दो भाग छपकर तैयार हैं। पहले भागमें उमास्वामिश्रावकाचार, कुन्दकुन्द -- श्रावकाचार और जिनसेनत्रिवर्णाचार इन तीन ग्रन्थोंकी परीक्षाके तीन लेख हैं और दूसरे भाग में भद्रबाहुसंहिताकी परीक्षाका विस्तृत लेख है। अब इनके बाद जो लेख निकले हैं और निकलेंगे वे तीसरे भागमें संग्रह करके छपाये जायेंगे । प्रथम भागका संशोधन स्वयं लेखक महाशयके द्वारा कराया गया है, इससे पहले जो कुछ अशुद्धियाँ रह गई थीं वे सब इस आवृत्तिमें दूर की गई हैं। साथ ही जहाँ तहाँ आवश्यकतानुसार कुछ थोड़ा बहुत परिवर्तन भी किया गया है। समाजमें केवल निप्पक्ष और स्वतंत्र विचारोंका प्रचार करने के उद्देश्यसे यह लेखमाला प्रकाशित की जा रही है और इसी कारण इसका मूल्य बहुत कम - केवल लागतके बराबर - रक्खा गया है । आशा है कि सत्यप्रेमी पाठक इसका प्रचार करने में हमारा हाथ बँटावेंगे और प्रत्येक विचारशीलके हाथों तक यह किसी न किसी तरह पहुँच जाय, इसका उद्योग करेंगे 1 जैनसमाजके समस्त पण्डित महारायोंसे प्रार्थना है कि वे इन लेखों को ध्यानपूर्वक पढ़ें और इनके विषयमें अपनी अपनी स्वतन्त्र सम्मति हमारे पास भेजने की कृपा करें | इसके सिवाय निष्पक्ष विद्वानों का यह भी कर्तव्य होना चाहिए कि वे व्याख्यानों तथा समाचारपत्रों आदि के द्वारा लोगोंको ऐसे ग्रन्थोंसे सावधान रहने के लिए सचेत कर दें । द्वितीय भाद्र कृष्ण ७ सं० १९७४ वि० । } प्रार्थी:-- नाथूरामं प्रेमी ।

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