Book Title: Gadya Chintamani
Author(s): Vadibhsinh, T K Kuppuswami Sastri, S Subhramhanya Sastri
Publisher: Madras

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Page 44
________________ प्रथमो लम्बः । निहितमणिमौक्तिकनिकरेण तारागणेनेव सततसंचारजातश्रमच्छेदाय यथेष्टं निवसता दिवापि दर्शितरजनीशङ्कस्य, पाटितजलधरक्रोडाप्रविन्यस्त चूडामणिमयस्तूपिकाखमणिना शङ्कितसदातनमध्यंदिनस्य, मरकतमणिमयाजिरपृष्ठप्रसारितैर्मौक्तिकबालकाजालैः प्रतिफलितमिव सतारं तारापथं दर्शयतः, स्फाटिकशिलाघटितबलिपीठोपकण्ठप्रतिष्ठित महार्हमणिमयमानस्तम्भस्य, संस्तवव्याजेन शब्दमयमिव सर्वजगत्कुर्वता मस्तक - न्यस्तहस्ताञ्जलिनिवहनिभेन भगवन्तमर्चयितुमाकाशेऽपि कमलवनमापादयतेत्र भव्यलोकेन भासितोद्देशस्य, हाटकघटितसालपक्षपुटेन वीक्षितुमन्तरिक्षपर्यवसानमुड्डयनमिव कर्तुमुद्यतेन रजतघटितकवाटपुटविनिर्गच्छन्त्या निसर्गशुचिशुक्लध्यानदेश्यया रश्मिनिकरखेत्रलतया ध्यानपरयमधनसविधविनिर्गच्छदेनोनिकरमिवान्धकारमतिदूरमुत्सारयता शिखरखचितपद्मरागप्रभया प्रसर्पन्त्या बहिर्गच्छदतुच्छभव्यभक्तिरागमिव प्रदर्शयता सतत संभवदहमहमिकाप्रवेशनिबिडधरणिपमकुटकोटिकर्षणमसृणितमणिभित्त्युदरभासुरेण गोपुरचतुष्टयेनाधिष्ठितस्य, कोमलप्रवालदण्डाग्रग्रथितानामविरतयथार्हसपर्याप्रमोद सततसंनिहितसर्वदेवतानिःश्वासनिभेन मातरिश्वना सलीलं कम्पितानां पताकानां किंचित्कुञ्चितैरग्रहस्तैरास्तिकलोकमिव समर्पयितुं धर्मामृतमाहृयतः प्रतिप्रदेशव्यवस्थापित समस्तदेवताप्रतिमाप्रकरेण प्रचुरभक्तिचोदितशतमखमुखाखिलमखभुगागमनमिवादर्शयतः, प्रकृतिशान्तैर्मन्त्रमय भूतवाङ्मय सर्वस्त्रैः संसारकान्तारदावदहनज्ञानध्यानपरैः परहितनिरतस्वान्तैरेकान्तमताभिषङ्गभुजङ्गदंशनिरंशक्षीणजगदनेकान्तसंजीवनसमर्पणपरं परमागममुपदिशद्भिर्मुनिवरैरलंकृतमुनिनिकायविराजितस्य, राजपुरीपर्यायपारिजातभूरुहप्ररोहबीजभूतस्य ३३ 7 कुरुकुलक्षत्रियपुत्रार्हाध्ययनाभिषेकाद्यारम्भभूमेर्महतः श्रीजिनालयस्य हारताश्वोदयहरिद्भाजि भासुरमणिमौक्तिकमालाञ्चिते काञ्चनसजलकलशभृङ्गार

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