Book Title: Gadya Chintamani
Author(s): Vadibhsinh, T K Kuppuswami Sastri, S Subhramhanya Sastri
Publisher: Madras

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Page 82
________________ तृतीयो लम्बः । विश्वजगदातङ्कजनकम्, अतिमहद्युद्धमवर्तत । ततश्च तस्मिन्नाविष्कृतालीढशोभिनि मण्डलीकृत्य कोदण्डमकाण्डघनाघन इव घनरवमौर्वीनिनदगम्भीरगर्जत र्जितप्रतिभटस्फुटकपिलको परागविद्युदुद्द्योतितवपुषि वर्षात पृषत्कधारां सत्यंधरतनूजन्मनि धरापतिधराधराणां प्रत्यग्रखण्डितेभ्यः कण्ठकुहरेभ्यो मुखरित निखिलहरिवकाशा, काशकुसुममञ्जरीचारुभिश्चाभरैरारचितफेनपटलविभ्रमा, शरदभ्र कुलमित्रैरातपत्रैरासूत्रितपुण्डरीकषण्डविडम्बितशिखण्डिबर्हभरैः कचनिचयैः कल्पितशैवालविलासा, विलसदुडुनिक र निर्मलै मौलिमौक्तिकप्रकरैः प्रकटितपुलिन शोभा, हरिदिभकरदण्डानुकारिभिर्भुजैर्भुजंगमैरिव तरद्भिस्तरलीकृता, कृत्तपातितान्पादपानिव कबन्धान्कर्षन्ती, दिगन्तकूलंकषा क्षतजवाहिनी प्रावर्तिष्ट । न्यवर्तिष्ट च भयाविष्टमनाः काष्टाङ्गारप्रमुखः प्रधनान्निधनैकफलात्प्रत्यर्थिपार्थिवलोकः : 1 डम्बरा, ७१ ܕ तदनु यथायथं गतेषु पलायमानबलेषु पराजयलज्जानिमीलितमुखसच्छायेषु पार्थिवेषु परिहृतामर्षैरुन्मिषितगुणानुरागैः पौरवृद्धैरभिनन्दितगुणगणगरिमा जीवकस्वामी जीवितवल्लभया जयलक्ष्म्येव मूर्तिमत्या श्रीदत्ततनयया सह समसमयप्रहतमृदङ्गमद्दलपटहभेरीजन्मना नवजलधरध्वाना-. वधीरणधौरेयेण वेण नगरिशिखण्डिमण्डलमकाण्डे ताण्डवयन्नात्ममुखकमलविलोकनविनिर्गतयुवतिनयनकुवलयितगवाक्षेण नवसुधालेपधवलितव लभीनिवेशेन स्पर्शनचलितशिखरपताकापटताडितपयोधरमण्डलेन विमलसलिलधारासंदेहिमुग्धचातकचञ्चचुम्ब्यमाननिर्यूहनिहितमुक्तासरेण द्वारदेशनिवेशित पूर्णकुम्भेन समुत्तम्भितमणितोरणमरीचि सूत्रितेन्द्रचापचमत्कारेण विप्रकीर्णविविधकुसुमपुलकितधरणीतलविराजिना राजमार्गेण किंचिदन्तरमतिक्रम्य दिशिदिशि दृश्यमानतुङ्गशिखरसहस्रसंकोचितवियदाभोगमहिमकररथमार्गनिरोधनोन्मुखं विन्ध्याचलमिव विलोक्यमानं क्वचि

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