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राम-सीता भरत कवि ने बलदेव राम उनकी पत्नी सीता तथा भाई भरत
को लक्ष्य करके भी भजन लिखे हैं ।
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राम वनगमन के समय अपने छोटे भाई भरत को राज करने हेतु कहते हैं (३१६) भरत अपने भाई राम के रहते राज करने के लिए राजी नहीं होते, दे कहते हैं- भुझे राज से, भोग से कोई मतलब नहीं है, मैं संन्यास धारण करूंगा ( ३१७ ) |
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इसी प्रकार रावण के घर रहकर आने के कारण लोकनिन्दावश राम सीता - निर्वासित करते हैं तब वन में प्रवेश करते समय सीता सारथि द्वारा राम गृह को कहलवाती हैं - हे भाई! राम से कहना कि लोकनिन्दा के भय से मुझे (सीता को) छोड़ दिया पर इस प्रकार किसी भय से या लोकनिन्दा से धर्म को मत छोड़ देना (३१८) ।
अग्नि परीक्षा द्वारा सीता के निर्दोष सिद्ध होने के बाद राम सीता से घर चलने का आग्रह करते हैं (३१९) तब सीता राम से कहती है यह संसार दुःखों का समूह है, अब तो मैं करूँगी संसार करूँगी 04.
इस प्रकार कवि द्यानतराय ने आध्यात्मिक भजनों के साथ-साथ विविध विषयों से सम्बन्धित अत्यन्त मार्मिक एवं शिक्षाप्रद भजनों का सृजन किया है।
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भजनों के हिन्दी अनुवाद के लिए प्रबन्धकारिणी कमेटी के सदस्य श्री ताराचन्द्र जैन, एडवोकेट का आभारी हूँ ।
आशा की जाती है कि प्रस्तुत पुस्तक 'द्यानत भजन सौरभ' का समाज में प्रचार होगा ।
पुस्तक प्रकाशन में सहयोगी कार्यकर्ता एवं जयपुर प्रिन्टर्स प्रा. लि., जयपुर धन्यवादाई हैं।
श्रेयांसनाथ मोक्ष दिवस
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा वीर निर्वाण संवत् २५२९
१२.८.२००३
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डॉ. कमलचन्द्र सोगाणी
संयोजक
जैनविद्या संस्थान समिति
जयपुर