Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandramuni
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 10
________________ दवसंगह सम्पादित किया गया। हम ने भी भवन से प्रति प्राप्त की। प्रति अत्यन्त जीर्ण है, 10 इंच लम्बे, 41 इंच चौड़े प्रत्येक पृष्ठ पर लगभग 10 पंक्तियाँ हैं। यह मूल प्रति न हो कर प्रतिलिपि है। प्रकाशित प्रति एवं पाण्डुलिपि प्रति इन दो प्रतियों के आधार पर इस कृति का अनुवाद किया गया है। • अनुवाद पद्धति : अनुवादिका का यह प्रथम एवं श्रेष्ठ प्रयत्न है। उन्होंने अन्वयार्थ, टीकार्थ के बाद संक्षिप्त रूप से भावार्थ दे कर ग्रंथ को अधिक विस्तृत एवं बोझिल नहीं होने दिया है। गाथा के प्रत्येक शब्द का अर्थ सुस्पष्ट हो जाने के कारण प्राथमिक शिष्यों के लिए यह कृति अत्यन्त उपकारक सिद्ध होगी। ग्रंथकर्ता : इस ग्रंथ के रचयिता आ. नेमिचन्द्र हैं, यह बात 58वीं गाथा में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ होने से निर्धान्त है। आ. नेमिचन्द्र कौन थे? इस विषय पर इतिहासकारों में बहुत मतभेद हैं। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष [पु. 2] में पृष्ठ 629 पर नेमिचन्द्र नामक 4 आचार्यों का वर्णन है। यथा - 1. प्रभाचन्द्र क्र. 1 के शिष्य व भानुचन्द्र के गुरु - ई. 556-565. 2. आ. अभयनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्ती के शिष्य तथा आ, इन्द्रनन्दि व आ. वीरनन्दि के ज्येष्ठ गुरुभाई ईसवी सन् की 10वीं सदी का उत्तरार्ध व ग्यारहवीं का पूर्वार्ध। 3. आ. नयनन्दि के शिष्य एवं आ. वसुनन्दि के गुरु - समय वि. 1075 से 1125. 4. ज्ञानभूषण भट्टारक के शिष्य - समय वि. 16वीं सदी का उत्तरार्ध। इन चारों में से द्वितीय क्रमांक के नेमिचन्द्र इस ग्रंथ के रचयिता हैं .. ऐसी मान्यता सर्वमान्य थी, परन्तु कुछ विद्वानों ने इस मत का खण्डन किया। अतः ग्रंथकर्ता आ. नेमिचन्द्र कौन हैं? इस में 2 मत हैं। एक मतानुसार सिद्धान्त चक्रवर्ती आचार्य नेमिचन्द्र ही प्रस्तुत ग्रंथ के कर्ता हैं, तो दूसरे मतानुसार आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्ति देव हैं। डॉ, नेमिचन्द्र शास्त्री प्रस्तुत ग्रंथ के कर्ता सिद्धान्ति देव नेमिचन्द्र हैं, ऐसा मानते हैं। [देखो - तीर्थंकर महावीर और उन की आचार्य परम्परा, भाग-1]

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