Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandramuni
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 8
________________ विव्यसंगह सारांश रूप में इतना ही कथन करना पर्याप्त होगा कि इतने विशद अर्थ से परिपूर्ण, इतना लघुकाय एवं लोकप्रिय अन्य कोई ग्रंथ प्राप्त होना कठिन ही है। अवधूरि टीका : अवचूरि का अर्थ सार या निचोड़ है। गाथाओं के अर्थ को संक्षिप्ततः प्रस्तुत किया गया है, अत: टीका का अवचूरि नाम सार्थक है। इस टीका के रचयिता कौन हैं? इस विषय में पूर्व प्रकाशित ग्रंथ के सम्पादित मौन हैं। एक बार हजारीबाग के बाड़म बाजार दि. जैन मन्दिर में स्थित स्वाध्याय भवन का मैं अवलोकन कर रहा था। वहाँ मुझे 12-10-1967 का जैनसन्देश का शोधाङ्क प्रास हुआ। उस में पृष्ठ 7 से 13 तक पं. कैलासचन्द्र शास्त्री द्वारा लिखित द्रव्यसंग्रह, उस के कर्ता और टीकाकार शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया गया है। पृष्ठ 11 पर आ. प्रभाचन्द्र कृत संस्कृत वृत्ति के कुछ उद्धरण [गाथा 10, गाथा 30, गाशा आदि के दिमे गरे हैं: हा प्रस्तुत कृति से मिलान करने पर स्पष्ट हो जाता है कि यह टीका आ, प्रभाचन्द्र कृत ही ___ अब प्रश्न उपस्थित होता है कि आ. प्रभाचन्द्र कौन थे? जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश[पु. 3 ] में प्रभाचन्द्र नामक १ श्रुतधरों का वर्णन मिलता है। परन्तु उन में कोई अवचूरि टीका के रचयिता हैं, ऐसा स्पष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं होता। ___ आ. प्रभाचन्द्र कृत पंचास्तिकाय टीका भी है। उस की गाथा 26 एवं इस ग्रंथ की गाथा 2 की टीका का मिलान करने पर पूर्ण साम्यता दृष्टिगोचर होती है। इस से यह अनुमान करना उचित जान पड़ता है कि पंचास्तिकाय टीका के निर्माता आ. प्रभाचन्द्र ही इस टीका के रचयिता हैं। इन का समय वि.सं. 1319 है। ___ ग्रंथ के पाठभेद : दव्यसंगह की बृहत् टीका ब्रह्मदेव सूरि कृत है। उस टीका में ग्रंथ के पाठ का विशेष रूप से अवलोकन किया गया है। उस टीका के साथ इस टीका की तुलना करने पर अनेक पाठभेद प्राप्त होते हैं। । ___ कुछ पाठभेद अत्यन्त सामान्य हैं। प्राकृत व्याकरण के विकल्पात्मक नियमों से उन की सिद्धि होती है। वे पाठभेद अर्थों में कोई परिवर्तन नहीं करते। यथा - ___ 1. धम्मोवएसणे - धम्मोवदेसणे। 2, हवई - हवे।

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