Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandramuni
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 7
________________ दव्यसंगह को छोड़ कर आस्त्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य और पाप इन सात पदार्थों का वर्णन इस अधिकार में किया गया है। इस अधिकार की विशेषता यह है कि प्रत्येक पदार्थ के द्रव्य और भाव ये दो भेद कर के प्रत्येक की परिभाषा एवं उन के भेद-प्रभेदों का वर्णन सूत्र शैली में किया गया है। ___ अन्तिम 20 गाथाओं में गोक्षमार्ग का वर्णन किया गया है। तत्त्वार्थसूत्रकर्ता ने सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः इस सूत्र के माध्यम से मोक्ष के मार्ग का कथन किया है, उसी को प्रस्तुत ग्रंथकर्ता ने सम्मईसणणाणंचरणं मोक्खस्स कारणं जाणे ऐसा प्रतिपादन किया है। यह त्रितयात्मक मोक्षमार्ग व्यवहार मोक्षमार्ग है। निश्चय से उन तीनों से युक्त एक शुद्धात्मा ही मोक्षमार्ग है। अतः मुमुक्षु के लिए आत्मा ही सर्वश्रेष्ठ ध्येय है। छद्मस्थ व्यक्ति को दर्शनपूर्वक ही ज्ञान होता है। उस के द्वय-उपयोग केवलज्ञानी की तरह युगपद् नहीं होते। सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान के उपरान्त चारित्र मोक्षमार्ग का अनिवार्य हेतु है। उस के अभाव में मोक्ष होना संभव नहीं है। व्रत-समिति व गुप्तिरूप तेरह प्रकार का व्यवहार चारित्र है और आत्मा में रममाण हो कर सम्पूर्ण बाह्याभ्यन्तर क्रियाओं का निरोध करना निश्चय चारित्र है। __ दोनों प्रकार के मोक्षमार्ग की सिद्धि के लिए ध्यान आवश्यक होता है। इस ग्रंथ में पदस्थ ध्यान के ध्येयभूत अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधुओं का स्वरूप पर्णित है। अन्त में उत्कृष्ट ध्यान के लिए ग्रंथकार का कथन है कि - अप्पा अप्पम्मि रओ, इणमेव परं हवे झाणं। __ इस प्रकार मोक्षमार्ग का प्रतिपादन करने के उपरान्त ग्रंथकर्ता ने अपने औद्धत्य का परिहार करते हुए कहा है कि "निर्दोष, पूर्ण श्रुतधर मुनिश्रेष्ठ, मुझ अल्पश्रुतधर नेमिचन्द्र मुनि द्वारा लिखे गये इस ग्रंथ का शोधन कर लेवें।" ___ इस प्रकार कुल 58 गाथाओं में संक्षिप्तरीत्या सम्पूर्ण आगम अध्यात्म ग्रंथों का सार भरा हुआ है। उल्लेखनीय है कि प्रथम और तृतीय अध्याय में ग्रंथकर्ता ने नयशैली का प्रयोग कर के ग्रंथ की प्रामाणिकता व विषय की विशदता को कायम किया है। शैली की सहजता, सरलता, लावण्यता सामान्य पाठक को भी अपनी ओर आकर्षित करने में समर्थ है।

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