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प्रस्तावना - VII आचार्य जिनेश्वरसूरि की पट्ट-परम्परा में जिनचन्द्रसूरि, अभयदेवसूरि और जिनवल्लभसूरि। जिनवल्लभसूरि के पट्टधरों में दादागुरुदेव, युगप्रधान जिनदत्तसूरि, मणिधारी जिनचन्द्रसूरि, जिनपतिसूरि आदि हुए। यह परम्परा आज भी खरतरगच्छ के नाम से अविच्छिन्न रूप चली आ रही है। जिनवल्लभसरि के सतीर्थ्य भ्राता जिनशेखरसूरि से विक्रम सम्वत् १२०४ में रुद्रपल्लीय शाखा का आविर्भाव हुआ जो १८वीं शताब्दी तक प्रगतिशील रही। साहित्य-सर्जना - १२वीं शताब्दी के उद्भट विद्वानों और मूर्धन्य आचार्यों में इनकी गणना की जाती है। इनका अलंकार शास्त्र, छन्दशास्त्र, व्याकरण, दर्शन, ज्योतिष, नाट्यशास्त्र और सैद्धान्तिक विषयों पर एकाधिपत्य था। प्राकृत और संस्कृत भाषा के भी ये प्रौढ़ विद्वान् थे। इन्होंने अपने जीवनकाल में विविध विषयों पर अनेकों ग्रन्थों की रचना की थी। इनमें से वर्तमान में छोटी-मोटी ४५ कृतियाँ उपलब्ध हैं। इन्हें सिद्धान्तवेत्ता, विधिवेत्ता, आचारवेत्ता, स्वप्नशास्त्रवेत्ता, उपदेष्टा, काव्यनिर्माता और स्तोत्रनिर्माता के रूप में माना जाता है। इनके द्वारा निर्मित्त साहित्य और मूर्धन्य टीकाकारों द्वारा रचित टीका साहित्य की सूची संलग्न है।
रचना समय
क्र० ग्रंथनाम १. सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार प्रकरण
चूर्णि*
१२वीं श० सं० ११७० सं० ११७१ १२वीं शता० १२वीं शता० १२वीं शता०
वृत्ति * वृत्ति*
टीका नाम टीकाकार भाष्य* अज्ञात कर्तृक टिप्पण* रामदेवगणि
मुनिचन्द्रसूरि वृत्ति धनेश्वराचार्य वृत्ति* महेश्वराचार्य
हरिभद्रसूरि
चक्रेश्वराचार्य प्राकृत वृत्ति * अज्ञात कर्तृक टिप्पणक * अज्ञात कर्तृक भाष्य * अज्ञात कर्तृक
अज्ञात कर्तृक टिप्पण* रामदेवगणि वृत्ति हरिभद्रसूरि वृत्ति। मलयगिरि वृत्ति* यशोभद्रसूरि विवरण* मेरुवाचक
२. आगमिकवस्तुविचारसार प्रकरण
भाष्य*
१२वीं शता० सं० ११७२ १२वीं शता० १२वीं शता० १६वीं शता०
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