Book Title: Dharmshiksha Prakaranam
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 129
________________ परिशिष्ट-२ वृत्तिकारोद्धृत-पद्यानुक्रमणी आदि पद स्रोत पृष्ठाङ्क अट्ठविहा गणिसंपय अत्थी उ जो विणीओ अन्ना वि दिट्ठीया अनिशमशुभसंज्ञा [श्रावकप्रज्ञप्ति २७४] अन्यत् प्रकुर्वतः [काव्यप्रकाश सूत्र १३६] अभवन् वस्तुसम्बन्ध काव्यप्रकाश सूत्र १५०] अभिमुहगमणं अर्थआदिभ्योऽच् (टि.) [पा. सिद्धान्तकौमुदी ५/२/१२७] अलाभ-रोग-तण [नवतत्त्व २८ ] अविज्ञाततत्त्वेऽर्थे [न्यायसूत्र अविणीयजणो न अशीतिर्वातजा अष्टौ चक्राणि सव्ये आगमो ह्याप्तवचन आणवणि वियार. [नवतत्त्व २४ ] आप्तिं दोषक्षयं विदुः आभिग्गहियं [प्राचीनचतुर्थकर्मग्रन्थ ७५] आयाराई अट्ठ आयारसुयसरीरे आरंभिया परि इंदियकसाय [नवतत्त्व २१ इंदियकसायगारव इरियाभासा उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् [तत्त्वार्थसूत्र ५/२९] ง ค 5 & # ง ๕ % 3 8 ° 3 wwwwww : g * * * * า ง ” % Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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