Book Title: Dharmshiksha Prakaranam
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 29
________________ प्रस्तावना - xx हो रहा है। सतत सहयोग और प्रेरणा ही नहीं अपितु अपने विद्वत् शिष्यों के साथ इस पुस्तक का पूर्णरूपेण संशोधन करके मुझे कृतार्थ किया है, अतः मैं उनके प्रति श्रद्धावनत हूँ। श्री डी०आर० मेहता संस्थापक, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, व्यवस्थापक, श्री सिद्धि मनोहर भुवन प्रकाशन ट्रस्ट, अहमदाबाद, श्री जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर और मँजुल जैन, मैनेजिंग ट्रस्टी, एम०एस०पी०एस०जी० चेरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर के प्रति भी आभार व्यक्त करता हूँ कि इन चारों ट्रस्टों के संयुक्त प्रकाशन से यह ग्रंथ पाठकों के कर-कमलों में प्रस्तुत किया जा रहा है। अन्त में, मेरे परमपूज्य गुरुदेव खरतरगच्छालङ्कार गीतार्थ-प्रवर आचार्यश्रेष्ठ स्व० श्री जिनमणिसागरसूरिजी महाराज के वरद आशीर्वाद का ही प्रताप है कि मैं इस प्रस्तुत धर्मशिक्षा-प्रकरण का सम्पादन करने की क्षमता प्राप्त कर सका। ____ मेरे लेखन, संशोधन, सम्पादन आदि कार्यों में आयुष्मान मंजुल जैन और उसकी धर्मपत्नी अखण्ड सौभाग्यवती नीलम जैन, पुत्र विशाल जैन, पौत्री तितिक्षा जैन और पौत्र वर्धमान जैन का निरन्तर अविच्छिन्न रूप से सहयोग रहा है अतः इन सब के प्रति मेरी अन्तरंग हार्दिक शुभाशीष । - म० विनयसागर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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