Book Title: Dashvaikalika Uttaradhyayana
Author(s): Mangilalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 11
________________ है और दूसरे तथा सोलहवें में कुछ गद्यभाग है । इस आगम पर अनेक व्याख्याअन्य प्राप्त होते हैं । उनमे मस्कृत भाषा मे लिखी गई 'वृहद्वृत्ति' बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । इसके कर्त्ता है-वादिवेताल शाति सूरी । इनका अस्तित्वकाल विक्रम की ग्यारहवी शताब्दी है । इस 'वृहद्वृत्ति' के आधार पर बारहवी शताब्दी मे नेमीचन्द्र सूरी ने 'सुखवोया' नाम की टीका लिखी। उसकी अपनी यह विशेषता है कि उसमे प्राकृत कथाओ का सुन्दर सकलन किया गया है । इस आगम पर जिनदास महत्तर कृत चूर्णि भी प्राप्त होती है, किन्तु वह इतनी विशद नही है । प्रस्तुत प्रयत्न 1 ardaालिक और उत्तराध्ययन- इन दो आगमो पर हिन्दी मे अनेक व्याख्या-ग्रन्थ लिखे जा चुके हैं । तेरापथ संप्रदाय ने भी आगम- सपादन कार्य प्रारम्भ किया । उसके वाचना प्रमुख हैं – आचार्य तुलसी और सपादक- विवेचक हैं मुनि नथमल । अनेक साधु-साध्वियो का इसमे अविकल योग भी प्राप्त है । कार्य अपनी गति से चल रहा है । अनेक आगम प्रकाशित हो चुके हैं और विद्वत् समाज मे समादृत भी हुए है । 'दसवेलिय' इस नाम से दशवैकालिक सूत्र का हिन्दी अनुवाद तथा विस्तृत टिप्पणी से युक्त संस्करण प्रकाशित हुआ है । साथ-साथ 'दशकालिक एक समीक्षात्मक अध्ययन' भी प्रस्तुत सूत्र के विभिन्न पहलुओ पर विशद प्रकाश डालता है । इसी प्रकार 'उत्तरज्झयणाणि' के दो भाग तथा 'उत्तराध्ययन · एक समीक्षात्मक अध्ययन – ये तीनो ग्रन्थ उत्तराध्ययन की सर्वांगीण व्याख्या के बेजोड ग्रन्थ हैं । प्रस्तुत प्रयत्न की अपनी विशेषता है। मुनि मुकुलजी ने दोनो आगमो को सरल हिन्दी पद्यो मे गूथ कर जन-जन के लिए सुवोध बना दिया है । आगमो के पद्यात्मक अनुवाद का भी अपना मूल्य होता है, क्योकि आवाल - गोपाल उसको पढने मे रस लेता है । मैं यह कहने का अधिकारी तो नही हूँ कि यह कृति कितनी सशक्त वन पडी है, किन्तु इतना अवश्य कहूँगा कि लोगो के लिए यह उपयोगी सिद्ध होगी । मुनि मुकुलजी ने दो बार इस कृति को सँवारने मे परिश्रम किया, यह उनकी निष्ठा का ही प्रतिफलन है । आगमो की इस पद्यात्मक - विघा का जनता स्वागत करेगी, इसी आशा के साथ ग्रीन हाउस, -सी स्कीम, जयपुर १० अक्टूबर १९७५ मुनि दुलहराज

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