Book Title: Dashvaikalika Uttaradhyayana
Author(s): Mangilalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 10
________________ है । इस आगम की रचना से पूर्व नव दीक्षित मुनि को आचाराग के वाद उत्तराध्ययन पढाया जाता था। बाद मे आचाराग का स्थान दशकालिक ने ले लिया। इसके दस अध्ययन और दो चूलिकाएँ हैं। इसमे ५१४ श्लोक तथा ३१ सूत्र हैं । यह आगम पद्यमय है। केवल चौथे, नौवें और प्रथम चूलिका मे गद्य भाग है। यह सूत्र दिगम्वर और श्वेताम्बर--दोनो परम्पराओ को समान रूप से मान्य रहा है। वर्तमान मे श्वेताम्बर परम्परा मे नव दीक्षित मुनि को सर्व प्रथम इसी आगम की वाचना दी जाती है। .:. - इस आगम पर भारतीय आचार्यों ने प्राकृत, संस्कृत तथा गुजराती मिश्रित राजस्थानी मे अनेक व्याख्या-ग्रन्थ लिखे। इन व्याख्या-ग्रन्थो मे विक्रम की ३-५ शताब्दी के महान् आचार्य अगस्त्यसिंह स्थविर द्वारा लिखी गई चूर्णि प्राचीनतम है। इसका पहली वार प्रयोग हमारे यहाँ से सपादित और विवेचित 'दसवेआलिय' में हुआ है। संस्कृत मे लिखी टीकाओ मे आठवी शताब्दी के महान् आचार्य हरीभद्र द्वारा लिखित टीका विश्रुत है। __यह आगम शैक्ष को मुनि जीवन की प्रारभिक चर्याओ के विधि-विधानो की अवगति देता है तथा अध्यात्म मे, लीन रहने की भावना को दृढमूल बनाता उत्तराध्ययन । - - इसमे दो शब्द हैं-उत्तर और अध्ययन । इस आगम के छत्तीस. अध्ययन है। इसके अंतिम श्लोक (३६।२६८) से यह ज्ञात होता है कि यह भगवान् महावीर की अतिम वाणी है। इसका निरूपण करते-करते भगवान् सिद्ध-बुद्धमुक्त हुए । कुछेक विद्वान् इसे एककर्तृक नही मानते । हमारा भी यही मानना है कि यह सकलन-सूत्र है। इसका पहला सकलन.वीर निर्वाण की प्रथम शताब्दी के पूर्वार्द्ध मे हुआ और उत्तरकालीन सस्करण देवप्रिंगणी के समय मे सम्पन्न हुआ। . इसमे ३६ अध्ययन हैं। इसका प्रतिपाद्य विशद है और विभिन्न विषयो को आत्मसात् किए चलता है। एक शब्द मे इस आगम को भगवान् महावीर की विचारधारा का प्रतिनिधि-सूत्र कहा जा सकता है। इसमे १६३८ श्लोक और ८६ सूत्र हैं । यह पद्यात्मक आगम है । केवल उनतीसवाँ अध्ययनं गद्यात्मक १. विस्तार के लिए देखें-दशवकालिक एक समीक्षात्मक अध्ययन, वाचना प्रमुख आचार्य ___श्री तुलसी, सपादक-विवेत्रक-मुनि नथमल । २ विस्तार के लिए देखें-उत्तराध्ययन . एक समीक्षात्मक अध्ययन, वाचना प्रमुख आचार्य श्री तुलमी, सपादक-विवेचक-मुनि नयमल ।

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